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________________ गाथा १-५] क्षपणासार किये जाने वाले (स्वमुख उदयस्वरूप) कर्म हैं वे उदोरणारूपसे उदयावलिमें प्रवेश करते हैं । पांच ज्ञानावरण और चार दर्शनावरणका तो नियमसे उदय है । निद्रा और प्रचलाका कदाचितु अबक्तव्य उदय है । साता व असातावेदनोयमें से किसी एकका, चार संज्वलन कषायों में से, तीन वेदों में से और दोयुगलों (हास्य-रति व अरतिशोक) में से किसी एकका नियमसे उदय है। भय व जुगुप्साका कदाचित् उदय है और कदाचित् उदय नहीं है । मनुष्यायु, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक-त जस-कार्मणशरीर, छह संस्थानोंमें से किसी एक संस्थान का, औदारिकशरीरअंगोपांग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, वर्ण-गन्धरस-स्पर्श, अगुरुलघु आदि चार (अगुहलघु-उपघात-परघात-उच्छ्वास) प्रशस्त व अप्रशसपिहायोति में से किसी एकवः, सचतुष्क (स-बादर-पर्याप्त-प्रत्येक), स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग और सुस्वर-दुःस्वरमें से किसी एकका, आदेय, यशस्कोति, उच्च गोत्र, पांच अन्तराय (दान-लाभ-भोग-उपभोग और वीर्यान्तराय) का नियमसे वेदक होता है । यहाँपर अन्य प्रकृतियोंका उदय सम्भव नहीं है। इनमेंसे साता-असाताबेदनीय और मनुष्यायुको छोड़कर शेषका उदीरक होता है अर्थात् शेषकर्मो को उदीरणा होती है। शंका:-यहां आयु व वेदनीयकर्मको उदोरणा सम्भव क्यों नहीं है ? समाधानः-नहीं होती, क्योंकि वेदनोय व आयुकर्मको उदोरणा प्रमत्तसंयतगुणस्थान से आगे सम्भव नहीं है । (तृतीयगाया) कौन-कौन कर्मांश बन्ध अथवा उदयको अपेक्षा पहले व्युच्छिन्न हो जाते हैं ? यहांपर ज्ञानावरणकर्म की पांचों प्रकृतियों का बन्ध होता है अतः ज्ञानावरणकर्मकी एक भी प्रकृतिको बन्धव्युच्छित्ति नहीं कही गई है। दर्शनावरणकर्मकी स्त्यानगृद्धित्रिककी पूर्व में हो बन्धव्युच्छित्ति हो जाती है, क्योंकि सासादनसम्यग्दृष्टिगुणस्थानके आगे इन का बन्ध असम्भत्र नहीं है । वेदनीयकममें से असातावेदनीयकर्म की बन्धव्युच्छित्ति हो जाती है, क्योंकि प्रमत्तसंयतगुणस्थानसे ऊपर असातावेदनीयके बन्धका अभाव है । मोहनीयकर्मको मिथ्यात्व, बारहकषाय, अरति, शोक, स्त्रीवेद, नपुसकवेद ये १७ प्रकृतियां बन्धसे व्युच्छिन्न हो जाती हैं, क्योंकि पूर्व में ही इन प्रकृतियोंकी यथा सम्भव अघस्तन गुणस्थानों में बन्धव्युन्छित्ति हो जातो है। आयुकर्मको सभी प्रकृतियां १. जयधबल मूल पृ० १६४५ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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