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________________ क्षपणासास [ गाथा १-५ अधःप्रवृत्त करणके प्रथम समयसे लेकर प्रतिसमय अनन्तगुणी विशुद्धिके द्वारा विशुद्ध होता हुआ स्थितिकाण्डकघात व अनुभागकाण्डकघातके बिना ही अपने काल में संख्यातहजार स्थितिबंधापसरणोंको करता है, अप्रशस्तप्रकृतियों के विस्थानिक अनुभागका प्रतिसमय अनन्तगुणा-अनन्तगुणाहोन अनुभागबन्ध करता है और प्रशस्तप्रकृतियों का प्रतिसमय अनन्तगुणा-अनन्तगुणा चतुर्थानिक अनुभागबन्ध करता है । इसप्रकार बन्ध करता हुआ अध:प्रवृत्तकरणके कालको क्रमसे व्यतीत कर चरमसमयको प्राप्त होता है। अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें 'आत्मविशुद्धि के द्वारा बढ़ता है। इसे आदि करके प्रस्थापनासम्बन्धी निम्न चार गाथासूत्रोंकी विभाषा की जाती है । संकामणपट्टबगस परिणामों केरिसो भवे। जोगे कसाय उपजोगो लेस्सा वेवो य को भवे ।।१।। काणि वा पुदवबद्धाणि के वा असे णिबंधदि । कधि सापलिय परिसंशिदिवा पसगो ॥६॥ के अंसे क्षीय पुथ्वं बंधेण उदएण वा। अंतरं वा कहि फिच्चा के के संकामगो कहिं ।।३॥ कि द्विवियाणि कम्माणि अणुभागेसु केसु वा। ओवट्टे दूण सेसाणि कं ठाणं पडिबज्जवि ॥४॥ अर्थ:--संक्रमण प्रस्थापकके अर्थात् कषायकी क्षपणापर आरूढ़ चारित्रमोहादि कमकी प्रकृतियोंको अन्य प्रकृतिरूप संक्रमित करता है। उसके परिणाम किसप्रकारके होते हैं ? (उसके परिणाम इसप्रकारके होते हैं, ऐसी प्ररूपणाको विभाषा कहते हैं ।) उसके परिणाम विशुद्ध होते हैं और कषायोंका क्षपण प्रारम्भ करनेके भो अन्तर्मुहूर्त पहलेसे अनन्तगुणी विशुद्धि के द्वारा विशुद्ध होते आ रहे हैं । शुभपरिणाम कहनेसे अशुभपरिणामका निषेध हो जाता है । शुभपरिणामको प्रणालीबिना इतने विशुद्धपरिणामोंका होना असम्भव है। __ योग कोनसा होता है ? कषायों को क्षपणा करनेवाला चारों मनोयोगोंमें से किसी एक मनोयोगवाला अथवा चारों वचनयोगों में से एक वचनयोगवाला अथवा औदारिककाययोगी होता है, इन ६ योगोंके अतिरिक्त अन्ययोग सम्भव नहीं है। १. विसोहीए सुहागमणुभाग वुद्धि मोत्तूण पयारतरासंभवादो 1 (जयधवल मूल पृ० १९४१)। २. जयधवल मूल पृ० १६३९-४० । ३. कुछ पाठान्तर के साथ कषायपाहुड़े सुत्त पृ० ६१४-१५ गा०६१ से ६४ तक । ४. संकामएपढ़वगो कसायक्खवणाए आडवगो त्ति घुत्तं होदि (जयधवल मूल पृष्ठ १९४१) ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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