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________________ पृष्ठ । १८ विषय विषय अनन्त सुख की उत्पत्ति का कारण तथा उसकी सूक्ष्म ऋष्टिकरण का प्रमाण, प्रथम समय में कृष्टि विशेषताएं द्वितीयादि समयों में मसंख्यात गुणं प्रदेशों का क्षामिक सम्यक्त्व तथा उत्कष्ट चारित्र की उत्पत्ति मपकर्षण नवीन कृष्टि निर्माण तथा कृष्टि प्रमाण का कारण का निर्देश असाता वेदनीव के उदय से केवली भगवान के क्षुधादि-परीषह पाये जाते हैं तथा उनके माहारादि योग के अपूर्व स्पर्धक तथा सूक्ष्मकृष्टि प्रादि के क्रिया होती है ऐसो असत् मान्यता का परिहार १८७ सम्बन्ध में कथन २१० इन्द्रिय सुख की परिभाषा १८७ कष्टिकरण के मनन्तर समय में सकल स्पर्धकों का केवली साता प्रसाता जन्य सुख-दुःखक प्रभाव | कृष्टिरूप परिणमन, योग कृष्टियों का हीन क्रम । का कारण से वेदन केवली के साता वेदनीयका एक समय स्थिति वाला सयोगी जिनके तृतीय शुक्ल ध्यान का प्ररूपण तथा उदयरूप स्थिति बन्ध होता है इसका निर्देश १८८ मन्त में नाश को प्राप्त योग कृष्टि । सयोग केवली के प्रति समय होने वाले नोकर्माहार प्रघातिया कर्मों का चरम स्थिति काण्डक तथा तथा उसको स्थिति का कथन १९६ चरम समय में होने वाली समस्थिति का कथन समुद्घातगत केबली के तीन सममों तक नोकर्म प्रयोगी जिन व उनके ध्यान २१५ पाहार का प्रभाव पाया जाता है पश्चिम स्कंधद्वार कथन के अन्तर्गत केवली समुद् प्रयोगी के शुक्ल ध्यान द्वारा नाशित प्रतियां २१६ धात के निर्देश पूर्वक कंवली समुद्घात के अन्तर्गत प्रप्टम पृथ्वी का वर्णन २१७ पावजितकरण तथा इसके पूर्व एवं बाद में होने प्रथम एवं द्वितीय शुक्ल ध्यान का अधिकार वाले क्रिया विशेषों का कथन | सिद्धों से रत्नत्रयकी शुद्धि व समाधि की याचना २२६ योग निरोध का प्ररूपण सूक्ष्म योग, अपूर्वस्पर्धक सूजन, प्रति समय असंख्यात- क्षपणाधिकार इलिकागुणा अपकर्षण, किन्तु अपूर्वस्पर्षक प्रसंख्यातगुणा दर्शन मोह और पारित्रमोह कर्म प्रकृतियों को हीन कम से सूजन तथा प्रपूर्वस्पर्षक के प्रमाण क्षपणाविधि पूर्व में कही गई उसका उपसंहार करते का कथान २०६ । हुए चलिझा रूप ब्याख्यान २१२ २१३ २.३
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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