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________________ विषय प्रति समय श्रसंख्यात गुणी होन कृष्टि रचना तथा दीयमान द्रव्य में असंख्यात गुणी करता सूक्ष्म कृष्टि करण के समय में दीयमान द्रव्य का विशेषहीन आदि रूप क्रम द्वितीयादि समयों में क्रियमाण अधस्तन कुष्टि व अन्तरकृष्टि निर्देश एवं उनका प्रमाण प्ररूपण द्वितीयादि समयों में दोयमान द्रव्य सम्बन्धी कथन सूक्ष्म कृष्टियों को करने वाले के दृश्यमान प्रदेश पुज प्रकृत में संक्रम्यमाण प्रदेशाग्रका प्रल्पबहुत्व सूक्ष्म कृष्टि में संक्रान्त द्रव्य के प्रमाण को प्राप्त करने का साधकभूत बादर कृष्टियों में संक्रान्त प्रदेश का प्रल्पबहुत्व लोभ की द्वितीय संग्रह कृष्टि से तृतीय संग्रह कृष्टि में संक्रमण करने की अवधि बादर लोभ की प्रथम स्थिति में समयाधिक श्रावली शेष रहने पर तृतीय व किचिदून तृतीय कृष्टिका सूक्ष्म रूप परिणमना नदम गुण स्थान के चरम समय में स्थिति बन्ध निर्देश नवम गुण स्थान के चरम समय में स्थिति सत्व निर्दोश सूक्ष्म साम्पराय का कथन पर्वश्रय के कथनपूर्वक अवस्थित गुण रिण का भायाम अपकृष्ट द्रव्य के देने का विधान द्वितीयादि समयों में दिया गया द्रव्य प्रथम समवर्ती सूक्ष्म सम्पराय के दृश्यमान प्रदेश की श्रेणि प्ररूपणा चरम निषेक का द्रव्य प्रमाण तथा दीयमान द्रव्य की प्ररूपणा प्रकृत में दृश्यमान द्रव्य द्वितीय स्थिति काण्डक के प्रथमादि समयों में गुण श्रेणी शीर्ष का अल्पबहुत्व ( ३ ) पृष्ठ विषय १५३ सूक्ष्म साम्पराय गुण स्थान के प्रथम समय में मोह की गुशा श्र ेणी अन्तराय म यादि का अल्पबहुत्व द्वितीयादि काण्डकों के काल में गुण श्रेणी के ऊपर १५४ ] गोपुच्छता का निर्देश अधस्तन अनुदी, उपरिम धनुदी, मध्यम श्रनुदो कृष्टियों का अल्पमत्व सूक्ष्म साम्पराय में क्षपक के अन्त में होने वाली गुण श्ररणी का निर्देश १५४ १५५ ARE १५६ १५७ १६० १६० क्षीण कपाय गुरा स्थान में स्थिति मनुभाग काण्डक घात का प्रमारण १६१ १६२ १६१ क्षीण कषाय के परम काण्डक का ग्रहण तथा वहां पर देयादि द्रव्य का विधान १६३ १६३ १६४ १६६ मेंदीयमान और दृश्यमान द्रव्य का निर्देश प्रभुत चरम काण्डक के पश्चात् काण्डक घात के प्रभाव के प्रतिपादन पूर्वक मोह के स्थिति सत्त्व का निर्देश सूक्ष्म साम्पराय गुण स्थान के चरम समय में बन्ध का प्ररूपण उक्त गुण स्थान के चरम समय में ही स्थिति सत्व का निर्देश १६६ १६८ क्षीणकषाय के स्थिति अनुभाग बन्ध के प्रभाव का कथन १६८ पृष्ठ क्षीण कषाय के चरम समय में सत्व व्युच्छिन प्रकृतियों का निर्देश १६६ १७० ૭૦ १७२ १७३ ૨૦૪ १७४ १७४ १७६ १७७ क्षीणकषाय को कृतकृत्यक संज्ञा की प्राप्ति तथा इसके द्विचरम में उदय व्युच्छिन्न प्रकृति का निर्देश १७८ मानादि पात्रय सहित श्रप्यारोहक जीव के विषय में प्रथम स्थिति प्रादि का विशेष निर्देश स्त्री वेदोदय सहित श्रप्यारोहक जीव के स्त्री वेद को प्रथम स्थिति के प्रमाणादि का निर्देश नपुंसक वेदोदय सहित श्रप्यारोहक जीव के प्रथम स्थिति प्रमाणादि के विषय में विशेष कथन ve १८२ १८३ tex अनन्त चतुष्टय की उत्पत्ति का कारण व इसकी विशेषता १८५ किस कर्म के लाश से कौनसा गुण स्थान होता है ? १८५
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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