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________________ बिर ![* अथवा उदय प्त होनेपर एक स्थितिका वेदकj होता है प्रशस्त प्रकृतियों के द्विस्यानरूप और प्रशस्तप्रकृतियोंके चतुःस्थानरूपं उदयमा मुशलको भोगता है । उक्यप प्रकृतियों के प्रजापत्यं यनुत्कृष्टप्रदेमाको अनुभव करता उदयस्वरूप मत्रियों के प्रति प्रवेशा स्थिति वाग्रनुभागका उदीरक होता है PP [] ST विशेषार्थं प्रथमापशमसम्यक्त्वकै अभिमुख मिथ्यादृष्टिजीव के जिन प्रकृतियों का उदय है, उन प्रकृतियों की स्थितियसे उदयमें ट्रेविष्ट एकस्थितिका वेदक होता. तथा क्षषस्थितियोंकों के वैदक होता है। उक्त जीवके जिन अप्रशस्तप्रकृतियोंका उदय होता है उनके लेता-दारुरूप अथवा निम्ब- काजीररूप द्विस्थानीय अनुभागका वेदक होता है। उदयमें फ्राई हुई प्रतिके तियोके चतुः स्थानीय अनुभाग को वेदक होता उदयागत प्रकृतियोंके अजघन्य- अनुत्कृष्टप्रदेशों को वैदक होता है । जिन प्रकृतियों की विक होता है, उन प्रकृतियों के प्रकृति स्थिति और प्रदेशोंकी उदीरणा करता है । FIF 1 TT 1f", -- " Ta शंका उदय और उदीरणाम क्यों अन्तर है ? 15037 17 207 77 : F L 31 समाधान – जो कर्मस्कन्ध अपकर्षण, उत्कर्षादि प्रयोग के बिना, स्थितिका को प्राप्त होकर अपना-अपना फल देते हैं, उन कर्मस्कन्धोंकी 'उदय' संज्ञा है ( जो महान् स्थिति और अनुभागमें अवस्थित कर्मस्कन्ध अपकृषित करके फल देनेवाले किये जाते हैं, उन कर्मस्कंधोंकी उदीरणा' संज्ञा है। क्योंकि, अपक्व कर्मस्कन्धके पाचन करने को उदीरणा कहते हैं' । ध प ६ पू. २१३ पर अन्य अनुत्कृष्टृप्तदेशोंका उदय कहा हैं. किन्तु ज. अ. पु. १२ प २२६ पर अनुत्कृष्ट प्रदेशपिण्डका उदय कहा है । fa उदय उदीरणाका कथन करने के अनन्तर को कहते हैंदुति भाउ तिस्थहारच उक्कणा सम्म गेण हीणा वा । मिस्सेगुणा वा वि य सब्वे पपड़ी हवे सत्तं ॥ ३१ ॥ F → FREE. 7:3 KEVIN T श्रर्थ–दो या तीन श्रयु, तीर्थकर और आहारकचतुष्क, इन प्रकृतियोंसे रहित तथा सम्यक्त्वप्रकृति व सम्यग्मिथ्यात्वबिना शेष सर्वप्रकृतियोंका सत्त्व होता है । विशेषार्थ -- प्रथमोपशमसम्यक्त्व के अभिमुख मिथ्यादृष्टिजीव यदि अद्वायुष्क है तो उसके भुज्यमान आयुके बिना तीन आयुका सत्त्व नहीं होता । यदि वह जीव ०२. FL TR Re IT १. ध. पु. ६ पृ. २१३-१४ F7 9 FE 17 : = 11 ! י ז: 1 -1751 + ܕ ૪
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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