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________________ पृष्ठ सर्वकरणोपशामना सहानवस्थान . ६२ परिभाषा यह क्षायोपशमिक सकल चारित्र की अपेक्षा कहा है। क्षायिक सकल चारित्र तथा प्रौपशमिक सकल चारित्र उपशम या क्षपक थेगी में होता है। क्षायोपमिक चारित्र प्रमत्त व अप्रमत्तसंयत इन दो गुण स्थानों में ही होता है । देखो-करणोपशामना की परिभाषा में इसकी भी परिभाषा प्राई है। पदार्थ का पूर्व में उपलम्भ (प्राप्ति या सद्भाव) होने पर, पश्चात् अन्य पदार्थ के सदभाव से उसके प्रभाव का ज्ञान होने पर दोनों में जो विरोध देखा जाता है उसे सहान वस्मारूप विरोध समझना चाहिये । जैसे शीतोष्ण । प्रक० मा० परि० ४ भू. ६ पृ. ४९८ [निर्णम सागर मु० बंबई से मुदित] इस परिभाषा का स्पष्टीकरण राजवार्तिक के निम्न विस्तृत कयन से हो जायगा-अनुफ्लम्भ अर्थात् प्रभाव के साध्य को विरोध कहते हैं। विरोध तीन प्रकार का है-वघ्यघासक भाव, सहानवस्थान, प्रतिबन्ध्य-प्रतिबन्धक । १ वघ्यघातक माव विरोध सपं और नेवले या अग्नि और जल में होता है । यह दो विद्यमान पदार्थों में संयोग होने पर होता है । संयोग के पश्चात् जो बलवान होता है वह निर्बल को बाधित करता है । अग्नि से असंयुक्त जल अग्नि को नहीं बुझा सकता है । दूसरा सहानवस्थान विरोध ( जो कि प्रकृत है ) एक वस्तु को क्रम से होने वाली दो पर्यायों में होता है । नयो पर्याय उत्पन्न होती है तो पूर्व पर्याय नष्ट हो जाती है। जैसे, ग्राम का हरा रूप नष्ट होता है और पीतरूप उत्पन्न होता है। प्रतिबन्य-प्रतिबन्धकभाव विरोध-जैसे ग्राम का फल जब तक डाली में लगा है, तब तक फल और इंठल का संयोगरूप प्रतिबन्धक के रहने से गुरुत्व (माम में) मौजूद रहने पर भी नाम को नीचे नहीं गिराता है । जब संयोग टूट जाता है तब गुरुत्व फल को नीचे गिरा देता है। संयोग के प्रभाव में गुरुत्व पतन का कारण है। यह सिद्धान्त है। [अथवा जैसे दाह के प्रतिबन्धक चन्द्रकान्तमणि के विद्यमान रहते अग्नि से दाह क्रिया नहीं उत्पन्न होती, इसलिये मरिण तथा दाह के प्रतिबन्धक-प्रतिबन्ध्य भाव युक्त है ।] रा. वा० पृ. ४२६ [हिन्दी सार] (म.प्रो. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य) एवं षड्दर्शन समुच्चय का० ५७ पृ. ३५६ अर्थात् ३ लाख सागरोपम से ६ लाख सागरोपम के मध्य । सागरोपमशत सहस पृथक्त्व १४० . स्तिबुक संक्रमण २१८, २१६ (i) को स्थिवुक्कसंकमो रणाम ? उदयसरूवेण समद्विंदीए जो संकमो सो स्थित्रुक्कसंकमो ति भणदे । अर्य-उदयरूप से समान स्थिति में जो संक्रम होता है उसे स्तिबा
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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