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________________ २३२ ] नाधिकार । गाथा २८७-२८६ ध्यम पूर्वराष्ट्र संदष्टि नं. ४ में मध्यमखण्डद्रव्य मिलाने पर संदृष्टि की प्राकृति निम्न प्रकार हो जाती है - रखण्ड उभया! उभया श्र अपूर्वकृति समयढिका इसप्रकार द्रव्य देने का विधान जानना चाहिए। यद्यपि द्रव्य तो युगपत् जितना देने योग्य है उतना दिया जाता है; तथापि समझने के लिये पृथक-पृथक विभाग करके वर्णन किया है । हेट्ठासीसं थोवं उभयविसेसे तदो असंखगुणं । हेट्ठा अणंतगुणिदं मझिमखंडं असंखगुणं ॥२८७॥ पर्थ--(पूर्वोक्त गाथा २८६ में) कहे गये चारप्रकारके द्रव्योंम अधस्तनशीर्ष विशेष द्रव्य सबसे स्तोक है। इससे उभय द्रव्य विशेष असंख्यातगुणा है। इससे अधस्तनकष्टि द्रव्य अनन्तगुणा है और इससे मध्यमखण्ड द्रव्य असंख्यातगणा है ऐसा जानना। ___ तृतीयादि समयोंमें कृष्टियों सम्बन्धी विशेष करते हुए निक्षे गद्रव्य के पूर्व और अपूर्वगत संधि विशेष का कथन करते हैं भवरे बहुगं देदि हु विसेसहीणक्कमेण चरिमोत्ति । तत्तो [तगुणणं विसेसहीणं तु फड्ढयगे ॥२८८।। पवरि असंखाणंतिमभागणं पुवकिट्टिसंधीसु । हेट्ठिमखंडपमाणेणेव विसेसेण होणादो ॥२८६॥
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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