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गाथा २८६ ]
लब्धिसार
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जानना चाहिए । जहां विशेष हो वहां विशेष जानना चाहिए। यहां संदृष्टिकी अपेक्षा चयहीन क्रम लिये पूर्वकृष्टि आदि की रचना निम्न प्रकार होती है-
पूर्वकृष्टि रचना
आस्तिमकृष्टि
आदिकृष्टि
पूर्वकृष्टि
अधस्तशीर्षद्रव्य मिलानेपर समानरूप पूर्वकृष्टि रचना के नीचे ही अधस्तनकृष्टिद्रव्यद्वारा अपूर्व कृष्टि की समपट्टिकारचना निम्नप्रकार होती है-
अथ
शीर्ष द्रन्य
अच्छ शी दिव्य
पूर्वकृष्टि
अपूर्वकृष्टि समपट्टिका
पूर्व कृष्टियों में अधस्तनशीर्षद्रव्य मिलानेपर समानरूप पूर्वकृष्टि की रचना इसप्रकार होती है।
रिभ्य 'द्रव्य
विशेष
द्रव्य
―
अघ
अध
शोष/
द्रव्य
शीर्ष
संदृष्टि नं० ३ में उभयद्रव्यविशेष द्रव्य मिलाने पर संदृष्टि की आकृति निम्न प्रकार होती है । इसे गुपुच्छाकृति कहते हैं
पूर्व कृष्टि
अपूर्व कृष्टि समपट्टिका
पूर्वकृष्टि
अधू
शिर्ष
अधू
शोष
द्रव्य
उभय
द्रव्य विशेष
द्रव्य