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गाथा २८६ ] लब्धिसार
[ २२५ द्रव्य (पूर्वकृत कृष्टियोंको समद्रव्यवाली बनानेके लिए) दिया गया उसका नाम अधस्तन शीर्ष विशेष द्रव्य है । जिस देय द्रव्य के देने से समस्त पूर्वष्टियां प्रथमकृष्टिके समान हो जाती हैं, उस देय द्रव्य को प्राप्त करनेका विधान बताते हैं- पूर्व समय में जो कृष्टिमें द्रव्य दिया उनको पूर्वसमयमें कृतकृष्टिके प्रमाणमात्र गच्छका का, भाग देने पर मध्यमधन आता है । उसे एक कम गच्छके आधे से हीन दोगुणहानिसे भाजित करने पर एक चय (विशेष) का प्रमाण प्राता है। वहां एक १. विशेषार्थ गत उक्त कथनका स्पष्टीकरण अंकगणितीय दृष्टिसे संदृष्टि बनाकर निम्न प्रकार
किया जा सकता हैमानाकि प्रथमसमयकी पूर्वकृष्टियां ८ हैं। तथा प्रसंख्यात-२ मानने पर द्वितीय समयमें की गई कृष्टियां ८२-४ हुई। मानाकि प्रथम समयमें की गई कृष्टियोंके लिए अपकृष्टद्रव्य १६०० परमाण हैं तथा द्वितीय समयमें कृष्टियों के लिए अपकृष्टद्रव्य ३९२० परमाणु हैं । ऐसी स्थिति में प्रथमसमयकृत कृष्टियां इसप्रकार बनेंगी
१४४ । चरमकृष्टि
१६२
--- प्रथमसमयमें की गई कृष्टियां
-- कृष्टियां ------
२०८
यहां चयका प्रमाण १६ है अत: यहां द्वितीयकृष्टिमें ३२ अर्थात् दो चय, तृतीयकृष्टिमें ४८ पर्थात् तीन चय इत्यादि । इसप्रकार मिलाने पर प्रथम समयकी पाठों कृष्टियों में द्रव्य क्रमश: २५५-२५६ अर्थात् प्रत्येक कृष्टिमें समान हो जाता है । इसी को निम्न संदृष्टिमें दिखाया है
२४०
| द्वितीयकृष्टि २५६ । प्रथमकृष्टि
पूर्वकृष्टि । वि. द्रश्य
यहां चय का प्रमाण-१६
- । अधस्तन शीर्ष परिणामत: सर्वत्र
समद्रव्य १४४ + ] सातचय - १६० + छ: चय = २५६ १७६
पांच चय १६२+
चार चय = २५६ २०८ तीन चय
२५६ दो चय = २५६ २४०+ एक चय = २५६ +
पूर्वकृष्टिद्रव्य+अघस्तन विशेषद्रव्य (चयधन) =१६००+ २८, चयधन अर्थात् ४४८ -२०४८ [२५६४५=२०४८ सर्वत्र समद्रव्य]
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+ + +