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________________ २१५ ] लब्धिसार [ गाथा २७८ उपशामक होता है | माया और लोभ संज्वलनका स्थितिबन्ध' श्रन्तर्मुहूर्तकम दो माह प्रमाण होता है । अनन्तरपूर्व व्यतीत हुए दो माह प्रमाण स्थितिबन्धसे अन्तर्मुहूर्त घट कर इससमय दो संज्वलनोंका स्थितिबन्ध होता है । शेषकर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यातहजार वर्षप्रमाण है जो पूर्व स्थितिबन्धसे संख्यातगुरणा हीन है । इन्हीं कर्मोंका स्थितिकाण्डक पल्योपमके संख्यातवभागप्रमाण है और अनुभाग काण्डक अनन्तगुणो हानिरूप हैं । उससमय मान संज्वलनका जो एक समयकम उदयावलिप्रमारण सत्कर्म शेष रहा वह स्तिकसंक्रमण द्वारा मायाके उदय में विपाकको प्राप्त होता है । उदयरूपसे समान स्थिति में जो संक्रम होता है वह स्तिबुकसंक्रमण है । मायावेदकके प्रथम समय में पूर्व में कहे गये मानसंज्वलनके एक समयक्रम दो श्रावलिप्रमारण नवकबन्ध के समयबद्धों के प्राद्य ( प्रथम ) समयप्रबद्ध का निर्लेप होता है, इसलिये उसे छोड़कर दो समयकम दो आवलिप्रमाण नवक समयप्रबद्ध प्रत्येक समयमें श्रसंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे उपशमाए जाते हुए मायावेदक कालके भीतर एक समयकम दो श्रावलि कालके द्वारा पूर्णरूप से उपशमाए जाते हैं, क्योंकि प्रत्येक समय में एक-एक समयप्रबद्ध के उपशामन क्रियाकी समाप्ति हो जाती है। मानसंज्वलन के द्रव्यको विशेष हीन श्रेणिक्रमसे संज्वलन मायामें संक्रमण करता है । ये सर्व क्रिया मायावेदकके प्रथम समय में होती हैं । अब मायाश्रयके उपशमविधान के लिए ३ गायाएं कहते हैं Pash ३. मायाए पढमटिदी सेसे समयादियं तु आवलियं । मायालोद्दगबंधो मासं सेसाण कोइ भालावो ॥ २७८ ॥ १. माया वेदक के प्रथम समय का स्थितिबन्ध है । २. ज.ध.पु ०३ पृ. ३०१ । उदयरूप से अर्थात् उदीयमान प्रकृतिके रूप में प्रनुदय प्रकृतिका स्तुविक संक्रमण होता है । समान स्थिति में अर्थात् जिस उदीयमान निषेकसे ऊपर वाले अनुदय निषेकका भविष्य में उदय भाने वाले निषेकमें संक्रमण होता है वह उस उदयसे ऊपर वाले भिषेक में ही होगा । अर्थात् समान निषेक स्थिति में संक्रमण नहीं होगा यह तात्पर्य है । ज.ध. पु. १३ पृ. ३०० से ३०२ क. पा. सु. पृ. ७०० ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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