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गाथा २७७ ]
लब्धिसार
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अर्थ – संज्वलनमानकी प्रथम स्थितिमें प्रावलिकाल शेष रहनेपर नवीन समयप्रबद्ध के बिना अन्य तीन मानका सर्व द्रव्य उपशान्त हो चुकता है । उसी समय संज्वलन - मानक बन्ध व उदयव्युच्छित्ति हो चुकती है ।
विशेषार्थ -- मानसंज्वलनकी प्रथमस्थितिकी प्रत्यावलिके अन्तिम समय में एक समयकम दो आवलिप्रमाण समयप्रबद्धों को छोड़कर तीनप्रकार ( अप्रत्याख्यानावरणप्रत्याख्यानावरण-संज्वलन ) मानका सभी स्थिति अनुभाग और प्रदेश सत्कर्म सर्वोपशमनारूपसे उपशान्त हो जाता है, क्योंकि यथाक्रम उपशमाए जाने वाले मानका उस समय निरवशेष उपशान्तरूपसे परिणमन देखा जाता है । उच्छिष्टावलिको गौण करके मानसंज्वलनके एक समयकम दो आवलिप्रमाण नवकबन्धको छोड़कर ऐसा कहा गया है तथा इसी समय मानसंज्वलनकी जघन्यस्थिति उदीरणा होती है । इसी समय संज्वलनमानके बन्ध व उदय व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि उत्पादानुच्छेदका आलम्बनकर ऐसा बन जाता है' ।
माया की प्रथम स्थिति करनेका निर्देश करते हैं
से काले मायाए पडमट्ठिदिकारवेदगो होदि ।
माणस्स य आलाशे दब्वस्स विभंजणं तत्थ ॥ २७७॥
श्रर्थ - उसी समय ( संज्वलनमानकी प्रथम स्थिति एक ग्रावलिमात्र शेष रह जाने पर) संज्वलनमायाकी प्रथमस्थितिका कारक व वेदक होता है । संज्वलनमायाके द्रव्यका विभाजन आदि मानके आलापके समान है ।
विशेषार्थ - मानवेदकके अन्तिम समयके बाद तदनन्तर समय में अथवा प्रत्यावलिके अन्तिम समयके अनन्तर पश्चात् संज्वलनमानकी प्रथम स्थिति एक अवलि ( उच्छिष्टावलि ) मात्र शेष रह जानेपर माया संज्वलनके प्रदेशपुंजका प्रपकर्षणकर तथा उदयादि गुणश्रेणिरूपसे उसका निक्षेप करता हुआ मायासंज्वलनकी अन्तर्मुहूर्तवाली प्रथम स्थितिको उत्पन्न करके माया संज्वलनका वेदक होता है । मायासंज्वलनकी प्रथम स्थिति सम्बन्धी लम्बाई एक आवलि अधिक अपने वेदककाल प्रमाण होती है । माया वेदकसे लेकर यह तीनप्रकार ( अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन ) मायाका
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अ. ध. पु. १३ पृ. २६६-३०० ।