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________________ गाथा २४८-२४६] लब्धिसार [ १६७ स्थितिसम्बन्धी सर्व द्रव्य प्रथम और द्वितीय स्थितियों में संक्रमित हो जाता है। इस विधिसे किये जाने वाले अन्तरको अन्तर्मुहूर्तकालके द्वारा निर्लेप कर दिया जाता है, यह सिद्ध हुआ। अन्तरकरण की निष्पत्ति के अनन्तर समयमें होने वाली क्रिया विशेष को बताते हैं सत्तकरणाणि यंतरकदपढमे होति मोहणीयस्स । इगिठाणिय बंधुदमो ठिदिबंधो संखवस्सं च ॥२४॥ भणुपुत्वीसंकमणं लोहस्स असंकमं च संढस्स । पडमोक्सामकरणं छावलितोदेसुदीरणदा ॥२४६॥ अर्थ – अंतर कर चुकने के प्रथम समयमें मोहनीयकर्म सम्बन्धी सातप्रकारके करण प्रारम्भ होते हैं-मोहनीयकर्मका एक स्थानीय बंध, एक स्थानीय उदय, मोहनीयकर्मका संख्यातवर्षका स्थितिबंध, मोहनीयकर्मका प्रानुपूर्वीसंक्रम, संज्वलनलोभका असंक्रम, नपुसकवेदकी उपशमक्रियाका प्रारम्भ, छह प्रावलियोंके बीत जाने पर मोहनीयकर्मकी उदीरणा । विशेषार्थ --अन्तर समाप्तिका जो काल है उसी समयसे ही ये सात करण प्रारम्भ हुए हैं। । उनमेंसे मोहनीयकर्म का आनपूर्वीसंक्रम यह प्रथम करण है । यथास्त्रीवेद और नपुसकवेदके प्रदेशपुजको यहांसे लेकर पुरुषवेदमें नियमसे संक्रान्त करता है । पुरुषवेद, छह नोकषाय तथा प्रत्याख्यान और अप्रत्याख्यानके प्रदेशपुजको क्रोधसंज्वलनमें संक्रमित करता है अन्य किसी में नहीं । क्रोध संज्वलन और दोनों प्रकारके मान सम्बन्धी प्रदेशज को भी मान संज्वलन में नियमसे संक्रमित करता है, अन्य किसी में नहीं । मानसंज्वलन और दोनों प्रकारकी मायाके प्रदेशपुजको नियमसे मायासंज्वलनमें निक्षिप्त करता है तथा मायासंज्वलन और दोनों प्रकारके लोभ सम्बन्धी प्रदेशपुजको नियमसे लोभसंज्वलनमें निक्षिप्त करता है, यह आनुपूर्वीसंक्रम है । पहले चारित्रमोहनीय प्रकृतियोंका प्रानुपूर्वीके बिना प्रवृत्त होता हुआ संक्रम इस समय इस प्रतिनियत प्रानुपूर्वीसे प्रवृत्त होता है । १. २. ज.ध.पु १३ पृ. २५६-२६३ । ज. प. पु. १३ पृ. २६३ । क. पा.सु पृ. ६६०, घ, पु ६ प. ३०२ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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