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________________ १२ ] लब्धिसार [ गाथा १५ श्रोन्द्रियजाति और अपर्याप्त इन दोनों प्रकृतियोंकी ''बन्धव्युच्छित्ति एकसाथ होती है । उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर परस्परसंयुक्त चतुरिन्द्रियजाति और अपर्याप्त इन दोनों प्रकृतियोंका एकसाथ ''बन्धव्युच्छेद होता है, उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर असंज्ञोपंचेन्द्रियजाति और अपर्याप्त परस्परसंयुक्त इन दोनों प्रकृतियोंका युगपत् बन्धव्युच्छेद होता है, उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर परस्परसंयुक्त संज्ञोपंचेन्द्रियजाति और अपर्याप्त इन दोनों प्रकृतियोंकी एकसाथ "बन्धसे व्युच्छित्ति होती है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर परस्पर संयुक्त सूक्ष्म-पर्याप्तसाधारण इन तीनों प्रकृतियों की एकसाथ बन्धव्युच्छित्ति होती है, उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर परस्परसंयुक्त सूक्ष्म-पर्याप्त-प्रत्येकशरीर ये तीनों प्रकृतियां युगपत् ''बन्धसे व्युच्छिन्न होती हैं। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर परस्परसंयुक्त बावर-पर्याप्त साधारणशरोर इन तीनों प्रकृतियोंका युगपत् 'बन्धसे व्युच्छेद होता है; उससे सागरोपमशतगृथत्व नीचे उतरकर परस्परसंयुक्त बावर-पर्याप्त प्रत्येकशरीर-एकेन्द्रिय-आतप-स्थावर इन छहों प्रकृतियोंकी 'बन्धव्युच्छित्ति युगपत् होती है, उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर परस्परसंयुक्त द्वोन्द्रियजाति और पर्याप्त इन दोनों प्रकृतियोंका एकसाथ "बन्धब्युच्छेद होता है, उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर परस्परसंयुक्त त्रोन्द्रियजाति और पर्याप्त इन दोनों प्रकृतियोंका एकसाथ "बन्धव्युच्छेद होता है; उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर परस्परसंयुक्त चतुरिन्द्रियजाति और पर्याप्त ये दोनों प्रकृतियां युगपत् 'बन्धव्युच्छित्तिको प्राप्त होती हैं । उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर परस्परसंयुक्त असंजोपंचेन्द्रियजाति और पर्याप्त इन दोनों प्रकृतियोंकी युगपत् २२बन्धब्युच्छित्ति होती है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर लियंचगति तियंचगस्यानपूर्थी और उग्रोत इन तीनों प्रकृतियोंका एकसाथ २३बन्धसे व्युच्छेद हो जाता है; उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर नोचगोत्रको बन्धव्युच्छित्ति होती है। उससे सागरोपम शतपृथक्त्व नीचे उतरकर अप्रशस्तविहायोगति, दुभंग, दुःस्वर और अनादेय ये चारों प्रकृतियां "बन्धसे व्युच्छिन्न होती हैं । उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर हुण्डकसंस्थान व असंप्राप्तासुपाटिकासंहनन ये दो प्रकृतियां युगपत् बन्धसे व्युच्छिन्न हो जाती हैं । उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर नपुंसकवेवका "बन्धव्युच्छेद होता है, उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर वामनसंस्थान और कोलितशरीरसंहनन ये दोनों
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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