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________________ गाथा"५४३'] 'लब्धिसार [ १२६ ...विशेषाथ-सभ्यक्त्व मोहनीयको उदयावलि से बाह्य सभी स्थितियों में से प्रदेशों को अपकषित कर वर्तमान गुणवेरिण में निक्षिप्त करता हुआ उदय स्थितिमें अल्प प्रदेश पुज को दिया जाता है, क्योंकि आठवर्षप्रमाण स्थितिसत्कर्म से लेकर उदधामि गुरात्रिी प्रिमर्तमान होने में कोई रुकावट नहीं पाई जाती । पुनः तदनन्तर उपरिम स्थिति में असंख्यातगुणे प्रदेशपुज. को देता है । यहां पर गुणकार तत्प्रायोग्य पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । इसप्रकार तब तक असंख्यातगुरणे प्रदेशपूजको देता है जबतक चरमसमय स्वरूप स्थितिकाण्डक की प्रथम स्थिति प्राप्त नहीं होती । यही स्थिति गुणश्रेरिणशीर्ष बन गई है, यह प्रथम पर्व है। अब तक अपकर्षित द्रव्यके असंख्यातवें भाग को ही गुरणश्रेरिण में देता था, किन्तु यहां से असंख्यात बहुभाग को गुणश्रेरिणमें निक्षिप्त करने लगा और शेष असंख्यातवें भागको उपरिम स्थितियोंके समयमें अविरोधपूर्वक निक्षिप्त करता है । इस शेष बचे असंख्यातवें भाग में से असंख्यातवें भागको पृथक् रखकर वहां प्राप्त बहुभाग को स्थितिकाण्डकके भीतर प्राप्त हुए अन्तर्मुहर्त प्रमाण गुराश्रीणि अध्वानसे भाजित कर वहां प्राप्त एक खण्डको विशेष अधिक कर इस समयके गुणश्रेगिशीर्षसे उपरिम अनन्तर स्थितिमें अर्थात् स्थितिकाण्डककी आदि स्थिति में दिया जाता है । उसके पश्चात् प्राचीन गुरगोंरिगशीर्ष तक यहां के बहुभाग द्रव्यको उत्तरोत्तर विशेष हीन दिया जाता है, यह दूसरा पर्व हैं । पृथक रखे हुए असंख्यातवें भाग प्रमाण द्रव्यको अधस्तन आयामसे संख्यातगुणे उपरिम समस्त प्रआयामसे भाजितकर जो एक भाग प्राप्त हो उसे विशेष अधिक करके वहां की गोपुच्छा में सिंचितकर उससे ऊपर अतिस्थापनावलि से पूर्वतक विशेषहीन क्रमसे एक गोपुच्छ श्रेरिणरूप से दिया जाता है, यह तीसरा पर्व है। इसप्रकार यहां पर दीयमान द्रव्यकी तीन श्रेणियां हो गई । इसप्रकार स्थितिकाण्डकके उत्कीरण कालके द्विचरम समय तक अर्थात् द्विचरम फालि तक जानना चाहिए । ____साम्प्रतिकगुणश्रेणिके स्वरूप निर्देशपूर्वक चरमफालिके पतकालका निर्देश उदयादिगलिदसेसा चरिमे खंडे हवेज्ज गुणसेढी। फाडेदि चरिमफालि अणियट्टीकरणचरिमम्हि ॥१४३॥ १. ज.ध. पु. १३ पृ. ७४-७७ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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