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गाथा १३६ ] लांघसार
[ १२७ अक्त कथनका तात्पर्य यह है कि सम्यक्त्वके अन्तिम स्थितिकाण्डकको घातके लिये ग्रहण करता हुआ इस समय उपलब्ध होनेवाले अवस्थित गणश्रेणि आयामके संख्यातवें भाग को अर्थात् अन्तिम स्थितिकाण्डकके उत्कीरणकाल सहित कृतकरणीय कालको छोड़कर पुनः शेष संख्यात बहुभाग को ग्रहण करता है । "केवल इतनी ही स्थितियों को नहीं ग्रहण करता है, किन्तु इनसे संख्यातगुणी उपरिम अन्तर्मुहूर्तप्रमाण
रतन स्थिति के निधेक . विशिष्टस्यष्टीकरणार्य जाधवला (पु. १३) द्रष्टव्याऽस्ति ।
.. चश्मास्थिति काक के लिये गृहीतं मयाम ... ..
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अवप्रियतगुरुनायीका सैरात बैंभाग
ज्यावल्लभारसमस्त अबरयेत शिवा
PAN
cussARI
मरध्यास भाग LAUNE (मरास्थितमुहाकाका
for कृतकृत्यकाल अर्थात्
गणितावीज का संन्यात बाग
करम
मकाण्डकपरवार)
शिर अनिधिलागत