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________________ - कुजलन काव्य - परिच्छेदः ९८ महत्त्व उच्चकार्य की चाह को, कहते विबुध महत्व : और क्षुद्रता है वही, जहाँ नहीं यह तत्त्व ।।१।। सब ही मानव एक से, नहीं जन्म में भेद । कीर्ति नहीं पर एकसी, कारण, कृति में भेद ।।२।। नहीं वंश से उच्च नर, यदि हो प्रष्टचरित्र ।। और न नीचा जन्म से, यदि ही शुद्धचरित्र ।।३।। आत्मशुद्धि के साथ में, जब हो सद्व्यवहार । सतीशील सम उच्चता, तब रक्षित विधिवार ||४|| साधन के व्यवहार में, हैं जो बड़े धुरीण । वे अशक्य भी कार्य में, होते सहज प्रवीण ।।५।। क्षुद्रों में ऐसी अहो, होती एक कुटेव । आर्य-विनय उनकी कृपा, नहीं रुचे स्वयमेव ।।६।। ओछों को यदि दैव बस, मिलजावे कुछ द्रव्य । इतराते निस्सीम तो, बनकर पूर्ण अभव्य ।।७।। बिना दिखावट उच्चनर, सहज विनय के कोष ।। क्षुद्र मनुज पर विश्व में, करते निजगुण घोष ।।८।। लघुजन से भी उच्चनर, करें सदय व्यवहार । क्षुद्र दिखें, पर गर्व के, मूर्तमान अवतार ।।६।। ठाँके पर के दोष को, सज्जन दिया-निधान । छिद्रों को पर ढूँढते, दुर्जन ही अज्ञान ।।१०।। 304
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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