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________________ - ज, कुचल काव्य परिच्छेदः १७ प्रतिष्ठा 1-उन बातों से सदा दूर रहो कि जो तुम्हें नीचे गिरा देंगी, चाई के.ाण र के लिए अनिका कम से ही आवश्यक क्यों न हों।। 2-जो लोग अपने पीछे यशस्वी नाम छोड़ जाना चाहते हैं, वे अपने गौरव बढ़ाने के लिए भी वह काम न करें कि जो उचित नहीं है। 3-समृद्धि की अवस्था में तो नम्रता और विनय की विस्फर्ति करो, लेकिन हीन स्थिति के समय मान-मर्यादा का पूरा ध्यान रक्खो। 4-जिन लोगों ने अपने प्रतिष्ठित नाम को दूषित बना डाला है, वे बालों की उन लटों के समान हैं कि जो काटकर फेंक दी गयी हैं। 5-पर्वत के समान उच्च प्रभावशाली लोग भी बहुत ही क्षुद्र दिखाई पड़ने लगेंगे यदि वे कोई दुष्कर्म करेंगे, फिर चाहे वह कर्म घुघची के समान ही छोटा क्यों न हो। 6-न तो जिससे यशोवृद्धि ही होती है और न स्वर्ग प्राप्ति, फिर मनुष्य ऐसे आदमी की शुश्रूषा करके क्यों जीना चाहता है कि जो उससे घृणा करता है। 7-अपने तिरस्कार करने वाले के सहारे रहकर उदरपूर्ति करने की अपेक्षा तो यही अच्छा है कि मनुष्य बिना हीला हवाला किये अपने भाग्य में लिखे हुए को भोगने के लिए पूरा तैयार हो जाये। 8-अरे ? यह खाल क्या ऐसी अमूल्य वस्तु है कि जो अपनी प्रतिष्ठा बेंच कर भी इसे बचाये रखना चाहते हैं। ___-चमरी गौ अपने प्राण त्याग देती है जबकि उसके बाल काट लिये जाते हैं कुछ मनुष्य भी ऐसे ही मानी होते हैं कि जब वे अपनी मानमर्यादा नहीं रख सकते तो अपनी जीवन लीला का अन्त कर डालते हैं। ___10-जो मनस्थी अपने शुभनाम के नष्ट हो जाने पर जीवित नहीं रहता सारा संसार हाथ जोड़कर उसकी सुयश-मयी वेदी पर भक्ति की भेंट चढ़ाता है। ........- 303)........
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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