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________________ -जा कुबरम काव्य पर परिच्छेदः १४ महत्व 1-महान कार्यों के सम्पादन करने की आकांक्षा को ही लोग महत्त्व के नाम से पुकारते हैं और ओछापन उस भावनां का नाम है जो कहती है कि मैं उसके बिना ही रहूँगी। 2-उत्पत्ति तो सब लोगों की एक ही प्रकार की होती है परन्तु । उनकी प्रसिद्धि में विभिन्नता होली है, क्योंकि उनके जीवन में महान अन्तर होता है। -उत्तम कुल में उत्पन्न होने पर भी यदि कोई सच्चरित्र नहीं है तो वह उच्च नहीं हो सकता और हीन वंश में जन्म लेने मात्र से कोई पवित्र आचार वाला नीच नहीं हो सकता। 4-रमणी के सतीत्व की तरह महत्त्व की रक्षा भी केवल अन्तरात्मा की शुद्धि से ही की जा सकती है। 5-महान पुरुषों में समुचित साधनों को उपयोग में लाने और ऐसे कार्यों के सम्पादन करने की शक्ति होती है कि जो दूसरों के लिए असाध्य होते हैं। 6-छोटे आदमियों के बीज का ही यह विशेष दोष है कि जो वे महान पुरुषों की प्रतिष्ठा, उनकी कृपादृष्टि और अनुग्रह को प्राप्त करने की चेष्टा नहीं करते। 7-ओछी प्रकृति के आदमियों के हाथ यदि कहीं कोई सम्पत्ति लग जाय तो फिर उनके इतराने की कोई सीमा ही न रहेगी। 8-महत्ता सर्वथा ही विनयशील और आडम्बर रहित होती है, परन्तु क्षुद्रता सारे संसार में अपने गुणों का दिढोरा पीटती फिरती है। 9-महत्ता सदैव अपने से छोटों के प्रति भी सदय और नम्र व्यवहार ही करती है, परन्तु क्षुद्रता को तो घमण्ड की मूर्ति ही समझो। । 10-बड़प्पन सदैव ही दूसरों के दोषों को देंकने के यत्न में रहता है. पर ओछापन दूसरों के दोषों को खोजने के सिवाय और कुछ करमा ही जानता। ......-.. -..- ... - -.--...- - 1305 A E .. ...
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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