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________________ , कुमम काय - मूर्खता 1-क्या तुम जानना चाहते हो कि मूर्खता किसे कहते हैं ? जो वस्तु लामदायक है उसको फेंक देना और हानिकारक पदार्थ को पकड रखना, बस यही मूर्खता है। 2-मूर्खता के सब भेदों में सबसे प्रमुख मूर्खता यह है कि ऐसे काम में आने मन को प्रवृत्त करना जो कि अधम और अयोग्य है।। 3-मूर्ख मनुष्य अपने कर्तव्य को भूल जाता है और मुख से निन्दित तथा कर्कष बातें बोलता है, यह उद्धत और निर्लज्ज हो जाता है तथा उसे कोई भी अच्छी बात नहीं सुहाती है। 4-एक आदमी खूब पढ़ा लिखा और चतुर है, साथ ही दूसरों का गुरु है, फिर भी वह इन्द्रिय-लिप्सा का दास बना रहता है । उससे बढ़कर मूर्ख और और कोई नहीं है। 5-मूर्ख अपने विषय में अपने जीवन में स्वयं ही आगे से कह देता है कि उसका स्थान नरक के एक तुच्छ दिल में है। 6-उस मूर्ख को देखो जो एक महान कार्य को करने के लिए अपने हाथ में लेता है, वह उस काम को विगाड़ ही न देगा किन्तु अपने को भी येड़ियाँ पहिनने के योग्य बना लेगा। 7--यदि मूर्ख को सौभाग्य से बहुत सी सम्पत्ति मिल जाये तो उससे पराये लोग ही चैन उड़ाते हैं, किन्तु उसके बन्धुबान्धव तो भूखों ही मरते हैं। 8-यदि एक मूर्ख कोई बहुमुल्य वस्तु प्राप्त करले तो वह एक पागल और उन्मत्त की तरह व्यवहार करेगा। g-मूर्ख लोगों की मित्रता घड़ी सुहावनी होती है, क्योंकि जब वह टूट जाती है तो कोई दुःख नहीं होता। 10-योग्य पुरुषों की सभा में किसी मूर्ख मनुष्य का जाना ठीक वैसा ही है जैसा कि साफ सुथरे पलंग के ऊपर मैला पैर रख देना। . . -- ..-. -. -. - - -277) १ १ - .. -. .- .- . ..
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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