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________________ जाकुचल काव्य - परिच्छेदः ६६ शुभाचरण 1-मित्रता द्वारा मनुष्य को सफलता मिलती है किन्तु आचरण की पवित्रता उसकी प्रत्येक्ष इच्छा को पूर्ण कर देती है। 2--उन कामों से सदा विमुख रहो कि जिनसे न सुकीर्ति मिलती है और न लाभ होता है। 3-जो लोग संसार में उन्नति करना चाहते हैं उन्हें ऐसे कार्यों से सदा दूर रहना चाहिए जिनसे कीर्ति में कलक लगने की संभावना हो। 4-बुरा काल आने के पश्चात् भी जो लोग सत्य को नहीं छोड़ते उन मनुष्यों को देखो, वे छुद्र और अकीर्तिकारक कर्मों से सदा दूर रहते हैं। 5-यह मैने क्या किया । इस प्रकार परतावा देने वाले कर्म मनुष्य को कभी नहीं करने चाहिए और यदि किये हों तो भविष्य में वैसे | कर्म करना उसे श्रेयस्कर नहीं। -भले आदमी जिन बातों को बुरा बललाते हैं. मनुष्य को चाहिए कि जननी की रक्षा के लिए भी उन्हें न करे। 7-निन्धकर्मों द्वारा एकत्र की हुई सम्पत्ति की अपेक्षा तो सदाचारी पुरुष की निर्धनता कहीं अच्छी है। 8-धर्मशास्त्र में जो काम हेय बताये गये हैं उनको भी जो नहीं छोड़ते ऐसे मनुष्यों को देखो, वे चाहे सफल मनोरथ भी हो गये हों तो भी उन्हें शान्ति नहीं मिलती। 9.. लोगों को रुलाकर जो सम्पत्ति इकट्टी की जाती है, वह क्रन्दन ध्वनि के साथ ही विदा हो जाती है, पर जो धर्म द्वारा संचित की जाती है वह बीच में क्षीण हो जाने पर भी अन्त में खूब फूलती फलती है। ___ 10-छल छिद्र द्वारा संचित किया हुआ धन ऐसा ही है जैसे कि मिट्टी के कच्चे घर्ड में पानी भरकर रखना। (241)
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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