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________________ - कुरल काव्य कुल काव्य और परिच्छेदः १४ सदाचार 1-जिस मनुष्य का आचरण पवित्र है सभी उसकी वन्दना करते हैं इसलिए सदाचार को प्राणों से भी बढ़कर समझना चाहिए। 2-अपने आचरण की पूरी देख रेख रक्खो क्योंकि तुम जगत में कहीं भी खोजो. सदाचार से बढ़कर पक्का मित्र कहीं न मिलेगा। 3-सदाचार सम्मानित परिवार कोप्रगट करता है, परन्तु दुराचार कलंकित लोगों की श्रेणी में जा बैठाता है। 4-धर्मशास्त्र भी यदि विस्मृत हो जाये तो फिर याद कर लिये जा सकते हैं. परन्तु सदाचार से स्खलित हो गया तो सदा के लिए अपने स्थान से भ्रष्ट हो जाता है। 5-सुख-समृद्धि, ईर्ष्या करनेवालों के लिए नहीं है, ठीक इसी तरह गौरय दुराचारियों के लिए नहीं है। 6-दृढ़-प्रतिज्ञ सदाचार से कभी भ्रष्ट नहीं होते, क्योंकि वे जानते हैं कि इस प्रकार भ्रष्ट होने से कितनी आपत्तियाँ आती हैं। 7-मनुष्यसमाज में सदाचारी पुरुष का सम्मान होता है, लेकिन जो लोग सन्मार्ग से च्युत हो जाते हैं. अपकीर्ति और अपमान ही उनके भाग्य में रह जाते हैं। __8-सदाचार सुख-सम्पत्ति का बीच बोता है परन्तु दृष्ट-प्रवृत्ति .असीम आपत्तियों की जननी है।। - 9-अवाच्य तथा अपशब्द, भूलकर भी संयमी पुरुष के मुख से नहीं निकलेंगे। 10-भूखों को जो चाहो तुम सिखा सकते हो किन्तु सन्मार्ग । पर चलना वे कभी नहीं सीख सकते । ।
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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