SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुरल काव्य परिच्छेदः सहधर्मिणी वही सती सहधर्मिणी, जो पत्नी गुणयुक्त 1 आय देख व्यय को करे, पतिसेवा - अनुरक्त 119|| यदि पत्नी दुर्भाग्य से, नहीं गुणों की मूर्ति । गृही सुखी होता नहीं, रहते अन्य विभूति || 211 यदि पत्नी गुणयुक्त तो, त्रुटि फिर घर में कौन ? यदि पत्नी गुणहीन तो, कमी नहीं फिर कौन 11३|| , यदि नारी निज शील से है सच्ची बलवान् । उससे बढ़कर कौन है, गौरव उच्च महान् ||४|| जग कर, सबके पूर्व ही, जो पूजे पतिदेव । कहना उसका मानते, वारिद भी स्वयमेव ||५|| कीर्ति, शील पतिप्रेम में, जो पूरी कर्मण्य । धर्मधुरीणा धन्य वह उस सम और न अन्य || ६ चार कोट की ओट में नारी रखना व्यर्थ | इन्द्रिय - निग्रह एक ही, जब रक्षार्थ समर्थ ॥७॥ जन्में जिससे पुत्रवर, ज्ञानी कीर्ति समेत 1 उस नारी को स्वर्ग के, देव बधाई देत ||८|| जिस घर से फैली नहीं, यश की लता विशाल 1 शिर उठाय वह शत्रु ढिंग, क्या हो सिंह सुचाल ||६|| आदृत और विशुद्ध गृह, है उत्तम वरदान । उपजे संतति योग्य तो महिमा अति परिमाण ||१०| 120
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy