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ज, कुबरम काव्य
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परिच्छेदः ।
गृहस्थाश्रम 1-पृहस्थाश्रम में रहने वाला मनुष्य अन्य तीनों आश्रमों का । प्रमुख आश्रय है ।
2- गृहस्थ अनाथों का लाथ. गरीबों का सहायक और निराश्रित मृतकों का मित्र है ।
3--पूर्वजों की कीर्ति की रक्षा. देवपूजन, अथितिसत्कार, बन्धुबान्धवों की सहायता और आत्मोत्रति, ये गृहस्थ के पाँच कर्म हैं।
4-जो बुराई से डरता है और भोजन करने से पहिले दूसरों को : दान देता है, उसका वंश कभी निर्बीज नहीं होता।
5-जिस घर में स्नेह और प्रेम का निवास है, जिसमे धर्म का साम्राज्य है, वह सम्पूर्णतया सन्तुष्ट रहता है-उसके सब उद्देश्य सफल होते हैं ।
6-यदि मनुष्य गृहस्थ के सब कर्तव्यों को उचित रूप से पालन । करे, तब उसे दूसरे आश्रमों के धर्मों के पालने की क्या आवश्यकता ?
7-मुमुक्षुओं में श्रेष्ठ वे लोग हैं जो धर्मानुकूल गार्हस्थ्य जीवन व्यतीत करते हैं ।
8 जो गृहस्थ दूसरे लोगों को कर्तव्य पालन में सहायता देता है और स्वयं भी धार्मिक जीवन व्यतीत करता है. वह .षियो से अधिक पवित्र हैं ।
_---सदाचार और धर्म का विशेषतया विवाहित जीवन से : सम्बन्ध और सुयश उसका आभूषण है।
10--जो गृहस्थ उसी तरह आचरण करता है जिस तरह कि उसे करना चाहिए.. वह मनुष्यों मे देवता समझा जायेगा।
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