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________________ (अनन्तरं स्वहस्तेन परहस्तेनापि वा लोचः कार्यः ) अथ लोच निष्ठापनक्रियायां सिद्धभक्तिकायोत्सर्ग करोमि('तवसिद्धे' इत्यादि) अनन्तरं प्रतिक्रमणं कर्तव्यम् । बृहद् ( मुनि) दीक्षा विधि दीक्षकः पूर्वदिने भोजन समये भाजनादि तिरस्कार विधि विधाय आहारं गृहीत्वा चैत्यालये आगच्छेत् । ततो वृहत्प्रत्याख्यान प्रतिष्ठापने सिद्धयोग भक्ति पठित्वा गुरु पार्श्वे प्रत्याख्यानं सोपवासं गृहीत्वा, आचार्य शांति-समाधि भक्तिः पठित्वा गुरोः प्रणामं कुर्यात् । भावार्थ-दीक्षा के पहले दिन दीक्षा लेनेवाला भोजन के समय धातु मिट्टी पात्रादिक की त्याग (भाजन तिरस्कार) विधि करके और आहार ग्रहण करके, अर्थात्-दीक्षा के पहले दिन दीक्षा लेनेषाला पात्रादिक में भोजन नहीं करके कर पात्र में आहार करके चैत्यालय में आवे, फिर बृहत्पत्याख्यान प्रतिष्ठापन में सिद्ध भक्ति एवं योगक्ति को पढ़ कर गुरु के पास में चार प्रकार का आहार का त्याग करके उपवास ग्रहण करें । फिर आचार्य, शांति एवं समाधि भक्ति का पाठ पढ़कर गुरु को प्रणाम करें । अथ-दीक्षादाने दीक्षादातजनः शांतिकगणधरवलय पूजादिकं यथाशक्ति कारयेत् । अथ दीक्षकं स्नानादिकं कारयित्वा यथा योग्यालंकार युक्तं महामहोत्सवेन चैत्यालये समानयेत् । स देवशास्त्रगुरुणां पूजां विधाय वैराग्य भावना परः सवैः सह क्षमां कृत्वा गुरोरगे तिष्ठेत् । ततो गुरोरने संघस्याग्रे च दीक्षायै यांचां कृत्वा तदाज्ञया सौभाग्यवती स्त्री विहित स्वस्तिकोपरिश्वेतवस्त्रं प्रच्छाद्य तत्र पूर्वदिशाभिमुखः पर्यकासनं कृत्वा आसने, गुरोश्चोत्तराभिमुखो भूत्वा, ( 1 संघाष्टकं संघ) च परिपच्छाय लोचं कुर्यात् । भावार्थ-दीक्षा के कुछ दिन पहले दीक्षा दिलवाने वाले दाता मन्दिर में शांतिकारक एवं गणधरवलय विधान को पूजन यथाशक्ति करावे, फिर दीक्षा के दिन दीक्षा लेनेवाले सज्जन को दाता अपने घर मंगल स्नानादिक कराकर यथायोग्य सुदर वस्त्राभूषण पहनाकर बड़े समारोह के साथ गाजे बाजे से मंदिर में लायें और यह आनंदपूर्वक देवशास्त्रगुरु सिद्धादिक की पूजन समारोह के साथ करके वैराग्य भावना में तत्पर वह दीक्षक सर्व गुहस्थ एवं अपने कुटुम्बिजनों से क्षमा कराये एवं स्वयं क्षमा करके गुरुदेव के सामने बैठ जावे । तदनन्तर संघ के सामने गुरु महाराज से दीक्षा की याचना करके गुरु को आज्ञा से सौभाग्यवती स्त्री द्वारा बनाये गये श्वेत वस्त्र से ढंके हुए चावल के स्वस्तिक पर उस WILAIMATERIANTRIKH MINA { 95 VIEOHIBITION
SR No.090258
Book TitleKriyasara
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSurdev Sagar
PublisherSandip Shah Jaipur
Publication Year1997
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size2 MB
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