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क्रिया-कलापे
E-देवसिक-अतिक्रमणम् । मक्या सिद्ध-प्रतिक्राति-धीर-द्विदशाहर्ताम् । प्रतिक्रामेन्मलं योगं योगिमक्या मजेत्यजेत् ॥१॥
ह-योगग्रहणम् । अथ रात्रियोगग्रहणक्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थ भावपूजावन्दनास्तवसमेतं श्रीयोगिभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
णमो अरहंताणं इत्यादि, कायोत्सर्गः, थोस्सामीत्यादि, जातिजरोरुरोगमरणा इत्यादि योगिभक्तिं साश्चलिको पठेत् ।
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१०-प्राचार्यवन्दना। प्राचार्यभक्ति पठित्वाचार्य वन्देत ।
इति देवसिकानुष्ठानम्। स्तुत्वा देवमथारभ्य प्रदोषे सद्विनाडिके। मुञ्चेनिशीथे स्वाध्यायं प्रागेव घटिकाद्वयात् ॥१॥
१-सिद्धभक्ति, प्रतिक्रमणभक्ति, वीरभक्ति और चतुर्विंशतितीर्थकर भक्ति पढ़ कर दिन भर के दोषों की शुद्धि करे। इसे ही प्रतिक्रमण कहते हैं। पश्चात् आज रात को इस स्थान में रहूँगा, इस नियम विशेष का नाम योग है। इस योग को योगिभक्ति पढ़ कर ग्रहण करे
और रात्रिप्रतिक्रमण के अनन्तर योगभक्ति पढ़ कर ही उस योग का मोचन करे।
२-आचार्य बन्दना के अनन्तर सायंतन देववन्दना करे, पाश्चात् दो घड़ी रात बीत जाने पर तीसरी घड़ी में स्वाध्याय करे और अब अर्ध रात्रि में दो घड़ी अवशिष्ट रह जाय तब स्वाध्याय समाप्त करे।
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