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शेषविधिः।
६---प्राचार्यचन्दना । पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजावन्दनास्तवसमेतं भाचार्यभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
जाप्य, 'श्रुतजलधिपारगेभ्यः' इत्यादि।
७ अपराहणास्वाध्याया। प्रेतिक्रम्याथ गोचारदोष नाडीद्वयाधिके ।
मध्याहे प्राइववृत्ते स्वाध्यायं विधिवद्भजेत् ॥१॥ अथापरातिकस्वाध्यायप्रतिष्ठापनक्रियायां श्रुतभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
जाप्य, "अहंद्वक्त्रप्रसूत" इत्यादि। अथापराधिक स्वाध्यायप्रतिष्ठापनक्रियायां प्राचार्यभक्तिकायोत्सर्ग करोमिजाप्य, "प्राज्ञः प्राप्तसमस्त" इत्यादि ।
(स्वाध्यायः) अथापराविकस्वाध्यायानष्ठापनक्रियायां श्रुतभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
जाप्य, "अहद्वक्त्रप्रसूत" इत्यादि । नांडीद्वयावशेषेहि तं निष्ठाप्य प्रतिक्रमम् । कृत्वाहिकं गृहीत्वा च योगं वन्यो यतैर्गणी॥१॥
१-प्रत्याख्यान अथवा उपवास के अनन्तर गोचार प्रतिक्रमण करे, पश्चात् मध्याह्न के ऊपर दो घड़ी बीत जाने पर पूर्वाह की तरह विधिपूर्वक स्वाध्याय करे।
२-दो घड़ी दिन अवशिष्ट रह जाने पर अर्थात् दिन के अन्त की तीसरी घड़ी वर्त रही हो तब स्वाध्याय पूर्ण कर देवसिक प्रतिक्रमण करे। प्रतिक्रमण करने के अनन्तर रात्रियोग ग्रहण कर आचार्य को बत्दना करे।
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