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शेषविधिः।
११-सायन्तन-देववन्दना ।
देववन्दना पूर्व उक्का सैव । पौर्वाधिकवेववन्दनायां इत्यस्य स्थाने अपराहिकदेववन्दनायां इत्यादि योज्यम् ।
१२-पादोषिक स्वाध्याया।
प्रादोषिकस्वाध्यायप्रतिष्ठापनक्रियायां इत्येवंरूपा उच्चारणां कृत्वा पूर्ववत्स्वध्यायं विदध्यात् । अनन्तरं किञ्चित् स्वपेत् ।
क्लम नियम्य क्षणयोगनिद्रया
लातं निशीथे घटिकाद्वयाधिके । स्वाध्यायमत्यस्य निशाद्विनाडिका
शेषे प्रतिक्रम्य च योगमुत्सजेत् ॥१॥
१३- बैरात्रिकस्वाध्यायः।
वैरात्रिकस्वाध्यायप्रतिष्ठापनक्रियायां इत्येवं रूपां उच्चारणां कृत्वा पूर्ववत्स्वाध्यायं विदध्यात् ।
१-प्रादोषिक स्वाध्याय की समाप्ति के अनन्तर कुछ काल तक योगनिद्रा द्वारा शारीरिक ग्लानि को दूर कर अर्ध रात्रि के ऊपर दो घड़ी बीत जाने पर तीसरी घडी में स्वाध्याय प्रारम्भ करे और दो घड़ी रात बाकी रह जाने पर तीसरी घड़ी में समाप्त करे। अनन्तर रात्रि प्रति. क्रमण कर रात्रियोग का योगिभक्ति पढ़ कर मोचन करे।
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