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देववन्दना-प्रयोगानुपूर्वी।
पश्चात् पूर्वोक्त देव वंदना के पाठ में न्यूनता हुई हो अथवा अधिकता हुई हो तो इसकी विशुद्धि के लिए समाधि भक्ति पढ़ने का श्रागम में नियम है। तद्यथा
प्रथम बैठकर क्रियाविज्ञापन करें।
अथ पौवाहिकदेववंदनायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थ भावपूजावंदनास्तवसमेतं श्रीचैत्यपंचगुरुभक्ती विधायतद्धीनाधिकत्वादिदोषविशुद्धयर्थं आत्मपवित्रीकरणार्थ समाधिभक्तिकायोत्सर्ग करोमि।
अथ पौर्वाह्निक देववंदना में पूर्वाचार्यों के अनुक्रम से सकल कर्मों के क्षय के लिए भावपूजावंदनास्तव सहित श्रीचैत्यभक्ति और श्रीपंचगुरुभक्ति करके उनके हीनाधिकत्वादि दोषों की विशुद्धि के लिए अात्माके पवित्र करने के लिए 'समाधिभक्ति और तत्संबन्धी कायोत्सर्ग करता हूं।
___अनन्तर उठकर पंचांग नमस्कार कर तीन श्रावर्त और एक शिरोनति पूर्वक "णमो अरहताणं” इत्यादि सामायिक दंडक पढ़ें । दंडक के अन्त में तीन आवर्त और शिरोनति करके सत्ताईस उच्छास प्रमाण कायोत्सर्ग करें। अनन्तर भूमिस्पर्शनात्मक पंचांग नमस्कार कर तीन
आवर्त और एक शिरोनति पूर्वक "थोस्सामि” इत्यादि दंडक पढ़ें । अन्त में पुनः तीन आवर्त और एक शिरोनति कर नीचे लिखी "समाधि-भक्ति पढ़ें"। तद्यथा
समाधि-भक्ति। अथेष्ट-प्रार्थना, प्रथमं करणं चरणं द्रव्यं नमः ।
प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग को नमस्कार हो।
१-समाधिभत्स्यास्समलः स्वस्य ध्यायेद्यथाबलम् ।
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