SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२ क्रियाकलापे अर्थ - जो इस स्तोत्र द्वारा पंच महागुरुओं की स्तुति करता है वह संसार रूप बड़ी भारी सघन वेल को छेद डालता है, मोक्ष सुख को आदर के साथ प्राप्त होता है तथा कर्म रूप ईंधन के पुंज को जला देता है ||६|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरुहा सिद्धाइरिया उवझाया साहु पंचपरमेडी | एदे पंचणमोयारा भवे भवे मम सुहं दिंतु ॥७॥ अर्थ - अर्हत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पंच परमेष्ठी रूप पंच नमस्कार मुझे भव भव में सुख देवें ||७|| अनन्तर बैठ कर नीचे लिखा आलोचना-पाठ पढ़ें आलोचना या अंचलिका - इच्छामि भंते! पंचमहागुरुभत्तिकाउस्सग्गो कओ, तस्सालोचेउं । अट्टमहापाडिहेरसंजुत्ताणं अरहंताणं, अहगुणसंपणार्ण उड्ढलोय मत्थयम्मि पहियाणं सिद्धाणं, अट्टपवयणमउसंजुत्ताणं आइरियाणं, आयारादिसुदणाणोवदेसयाणं उवज्झायाणं, तिरयणपालणरदाणं सव्वसाहूणं णिच्चकालं अंचेमि पूजेमि वंदामि णमंसामि, दुक्खक्खओ कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगड़गमणं समाहिमरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झ । अर्थ - हे भगवन् पंचमहागुरुभक्ति और तत्संबन्धी कार्योत्सर्ग किया उसकी आलोचना करने की इच्छा करता हूँ । अष्ट महाप्रातिहार्य संयुक्त श्रतों का अष्ट गुणोंकर संपन्न ऊर्ध्वलोक के मस्तक पर प्रतिष्ठित सिद्धों का, अष्ट प्रवचनमातृकाओं से संयुक्त आचार्यों का, आचारादि श्रुतज्ञान के उपदेशक उपाध्यायों का और रत्नत्रय के पालन में रत सर्व साधुओं का सदा अर्चन करता हूं पूजन करता हूँ वंदना करता हूँ नमस्कार करता हूँ । मेरे दुःखों का क्षय हो, कर्मों का क्षय हो, बोधि-रत्नत्रय का लाभ हो, सुगति में गमन हो, जिनगुणसंपत्ति हो । For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy