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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देववन्दना प्रयोगानुपूर्वी जेहिं झाणग्गवाणेहिं अइदड्ढयं, जम्मजरमरणणयरत्तयं दड्ढयं । जेहिं पत्तं सिवं सासयं ठाणयं, ते महं दिंतु सिद्धा वरं णाणयं ॥२॥ अर्थ - जिनने ध्यानरूप अग्निवारण से अत्यंत दृढ़ जन्म, जरा और मरण रूप तीन नगर निर्दग्ध किये हैं तथा जिनने शाश्वत स्थानमोक्ष प्राप्त किया है वे सिद्ध परमात्मा मुझे उत्कृष्ट ज्ञान देवें ||२|| पंचआचारपंच ग्गिसंसाया, बारसंगाइ- सुअजलहिअवगाहया । मोक्खलच्छी महंती महंते सया, सूरिणो दिंतु मोक्खगयासंगया ॥ ३ ॥ अर्थ- जो पंचाचार रूप पंचाग्नि के साधक हैं, द्वादशांग श्रुत रूप समुद्र में अवगाहन करते हैं, मोक्ष के कारण सम्यगदर्शन सम्यज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों से संगत-युक्त हैं वे आचार्य परमेष्ठी हमें उत्कृष्ट मोक्ष लक्ष्मी देवें ||३|| घोरसंसार भीमाडवीकाणणे, तिक्खवियरालणहपावपंचाणणे । हमग्गाण जीवाण पहदेसिया, वंदिमो ते उवज्झाय अम्हे सया ||४|| For Private And Personal Use Only ३१ अर्थ - तीक्ष्ण नखों वाले पाप रूप विकराल सिंह जहां विचरण कर रहे हैं ऐसे घोर संसार रूप भयानक अटबियों में मार्ग भूले हुए जीवों को जो पथ प्रदर्शक हैं । उन उपाध्याओं को हम सदा नमस्कार करते हैं ||४|| उग्गतवचरणकरणेहिं खीणंगया, धम्मवरझाणसुक्के क्कझाणं गया । भिरं तवसिरियस मालिंगया, साहवो ते महामोक्खपथमग्गया ||५|| अर्थ - जिनका उग्र तपश्चरण के करने से शरीर क्षीण हो गया है, जो धर्मध्यान और शुक्लध्यान में तल्लीन रहते हैं तथा तपोलक्ष्मी से लिंगत हैं वे साधु परमेष्ठी हमें मोक्षका मार्ग दिखलाने में असर होवें ||५|| एण थोत्तेण जो पंचगुरु वंदए, गुरुय संसारघनवल्ली सो छिंदए । लहह सो सिद्ध सोक्खाई बहुमाणणं, कुणइ कम्मिधणं पुंजपज्जालणं ॥ ६ ॥
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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