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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३० www.kobatirth.org क्रियाकलापे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वन्दता हूँ नमस्कार करता हूँ, मेरे दुःखों का क्षय हो, कर्मों का क्षय हो, बोधि-रत्नत्रय का लाभ हो, सुगति में गमन हो, समाधिमरण हो, जिनगुणसंपत्ति हो । अन्तर बैठे बैठे ही नीचे लिखा कृत्य विज्ञापन करें। अथ पौर्वाह्निकं पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजा वन्दनास्तवसमेतं पंचमहागुरुभक्तिकायोत्सर्गं करोमि । अब प्रातःकाल सम्बन्धी पूर्वाचार्यों के अनुक्रम से सकल कर्मों के क्षय के लिये भाव पूजा वन्दना स्तव सहित पंचमहागुरुभक्ति सम्बन्धी कायोत्सर्ग करता हूं । अनन्तर उठ कर पंचांग नमस्कार करें । पश्चात् भगवान के सन्मुख पहिले की तरह खड़े होकर मुक्ताशुक्ति मुद्रा जोड़ कर तीन आवर्त और एक शिरोनति कर पूर्वोक्त "सामायिक" दंडक पढ़ें। अंत में तीन आवर्त और एक शिरोनति कर सत्ताईस उच्लास प्रमाण कायोत्सर्ग करें । कायोत्सर्ग पूर्ण होने पर पुनः पंचांग नमस्कार कर तीन आवर्त और एक शिरोनति करें पश्चात् "थोस्सामि " इत्यादि चतुर्विंशति स्तव पढ़कर अंत में तीन आवर्त और एक शिरोनति करें । अनन्तर भगवान् 'सन्मुख पूर्वोक्तरीति से खड़े होकर नीचे लिखी पंचमहागुरु भक्ति पढ़ें । पंचमहागुरुभक्ति मणुयणाइंदसुरधरियछत्तत्तया, पंचकल्लाणसोक्खावली पत्तया । दंसणं णाण झाणं अनंतं बलं, ते जिणा दिंतु अम्हं वरं मंगलं ॥१॥ अर्थ - जिनके सिर पर मनुष्य, धरणेन्द्र और सौधर्मादि देव तीन छत्र लगाए खड़े रहते हैं, जो गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण इन पंच कल्याणक सन्बन्धी सुखों को प्राप्त हुए हैं। जो अनन्तदर्शन, धनन्तज्ञान, अनन्तध्यान — सुख, और अनन्तवीर्य इन अनंत चतुष्टय समन्वित हैं वे प्रभु हमारे लिए उत्कृष्ट मङ्गल प्रदान करें ॥ १ ॥ "पूर्ववत्पंच गुरून्नुत्वा स्थितस्तथा । For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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