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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देववन्दना-प्रयोगानुपूर्वी बोली गई स्तुतियों के मनमोहक उत्कट शब्द ही नाना प्रकार के पक्षियों के कलरव हैं, नाना भांति के तपोनिधि-मुनि हो किनारा है, जो श्राते हुए कर्मरूप जल के संवरण और आए हुए कर्मरूप जल के निःस्रवण से मुक्त है, जिसमें गणधर, चक्रधर, इन्द्र आदि भव्य-पुंडरीक पुरुषों ने पापरूप कलुष मल को दूर करने के लिये भक्तिपूर्वक स्नान किया है, जो बड़ा भारी है, परम पवित्र है, जिनके स्वरूप प्रतिवादियों करके न जीते जा सकें ऐसे जीवादि पदार्थों से जो अगाध है ऐसा अहंत रूप महानद का उत्तम तीर्थ पापमल का प्रक्षालन रूप स्नान करने के लिये प्रविष्ट हुए मेरे भी दुस्तर समस्त पापों का व्यवहरण-नाश करे ॥२३-३०॥ अताम्रनयनोत्पलं सकलकोपवह्वेर्जयात् कटाक्षशरमोक्षहीनमविकारतोद्रेकतः। विषादमदहानितः प्रहसितायमानं सदा मुख कथयतीव ते हृदयशुद्धिमात्यन्तिकीम् ॥३१॥ निराभरणभासुरं विगतरागवेगोदयानिरंवरमनोहरं प्रकृतिरूपनिर्दोषतः । निरायुधसुनिर्भयं विगतहिस्सहिंसाक्रमात् निरामिषसुतृप्तिमद्विविधवेदनानां क्षयात् ॥३२॥ मितस्थितनखांगजे गतरजोमलस्पर्शनं नवांबुरुहचंदनप्रतिमदिव्यगन्धोदयम् । रवीन्दुकुलिशादिदिव्यवहुलक्षणालंकृतं दिवाकरसहस्रभासुरमपीक्षणानां प्रियम् ॥३३॥ हितार्थपरिपंथिभिः प्रबलरागमोहादिभिः कलंकितमना जनो यदभिवीक्ष्य शोशुध्यते । सदाभिमुखमेव यज्जगति पश्यतां सर्वतः शरद्विमलचन्द्रमंडलमिवोत्थितं दृश्यते ॥३४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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