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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४ www.kobatirth.org क्रिया-कलापे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-तीन जगत में प्रसिद्ध अतों के प्रतिबिंबों की भक्ति करने से जो यह पुण्य मुझे प्राप्त हुआ है जो कि पाप के मार्ग को रोकने वाला है उस समर्थ पुण्य से मेरी भक्ति जन्म-जन्म में जिन धर्म में ही स्थिर होवे ||१५|| अर्हतां सर्वभावानां दर्शनज्ञानसम्पदाम् । कीर्तयिष्यामि चैत्यानि यथाबुद्धि विशुद्धये ॥ १६ ॥ अर्थ- सम्पूर्ण पदार्थ जिनके विषयभूत हैं अथवा परिपूर्ण यथाख्यात चरित्र जिनके विद्यमान है, क्षायिक दर्शन और क्षायिक ज्ञान रूप संपदा जिनके मौजूद है ऐसे अतों के चैत्यों का अपनी बुद्धि के अनुसार परिणामों की निर्मलता के लिए अथवा कर्म मल के प्रक्षालन के के लिए कीर्तन करूँगा ||१६|| श्रीमद्भावनवासस्थाः स्वयंभासुरमूर्तयः । वंदिता नो विधेयासुः प्रतिमाः परमां गतिम् ||१७|| अर्थ - मेरे द्वारा जिनकी वन्दना की गई है जो भवनवासी देवों के दैदीप्यमान भवनों में स्थिति हैं जिनका स्वरूप स्वयं भासुर रूप है ऐसी प्रतिमाएँ मुझ वंदक को परम गति अर्थात् मुक्ति प्रदान करें ||१७|| यावन्ति सन्ति लोकेऽस्मिन्नकृतानि कृतानि च । तानि सर्वाणि चैत्यानि वन्दे भूयांसि भूतये ॥ १८ ॥ अर्थ - इस तिर्यग्लोक में कृत्रिम और अकृत्रिम जितने प्रचुरतर प्रतिबिम्ब हैं उन सबको विभूति के लिए वंदता हूँ ॥ १८ ॥ ये व्यन्तरविमानेषु स्थेयांसः प्रतिमागृहाः । ते च संख्यामतिक्रान्ताः सन्तु नो दोषविच्छिदे ॥ १९ ॥ अर्थ- व्यंतरों के आवासों में सर्वदा अवस्थित जो असंख्यात प्रतिमागृह हैं वे मेरे दोषों की शान्ति के लिये होवें ॥ १६ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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