________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
क्रियाकलापे
अर्थ-जो मिथ्याज्ञान रूप अन्धकार से आच्छादित लोक क' प्रकाशक होने से अद्वितीय ज्योति है। अपरिमित श्रुत ज्ञान का जनक होने से सम्बन्धी है । आचारादि अङ्गों और पूर्व वस्तु आदि उपांगों से युक्त है। तथा एकान्तवादियों कर अजेय है ऐसे जैन वचन को सदा वन्दना करता हूँ ॥७॥
भवनविमानज्योतिव्यतरनरलोकविश्वचैत्यानि ।
त्रिजगदभिवन्दितानां वन्दे त्रेधा जिनेन्द्राणां ॥८॥ अर्थ-भवनवासी देवों, कल्पवासी देवों, ज्योतिष्क देवों और व्यन्तर देवों के विमानों में तथा मनुष्य लोक में तीन जगत् कर वन्दनीय जिनेन्द्र देव की जितनी भर प्रतिमा हैं उन सबको मन, वचन और काय से वन्दना करता हूँ ।।८।
भुवनत्रयेऽपि भुवनत्रयाधिपाभ्यर्च्यतीर्थकर्तृणाम् । वन्दे भवानिशान्त्यै विभावानामालयालीस्ताः ॥९॥
अर्थ-जिनका संसारपरिभ्रमण विनष्ट हो चुका है, तीन भुवन के स्वामी देवेन्द्र, नरेन्द्र और धरणेन्द्र द्वारा पूज्य ऐसे तीर्थंकरों के श्रालय-मन्दिर की पंक्तियों को भी संसार रूप अग्नि की शांति के लिए वन्दता हूं ॥६॥
इति पंच महापुरुषाः प्रणुता जिनधर्म-वचन-चैत्यानि। चैत्यालयाश्च विमलां दिशन्तु बोधिं बुधजनेष्टां ॥१०॥
अर्थ-इस तरह वन्दना किये गये अहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिनधर्म, जिनवचन, जिनचैत्य और जिनचैत्यालय ये नव देवता बुधजन जो गणधर देवादि उनको इष्ट ऐसी मुझे निर्मल बोधि देवें ॥१०॥
अकृतानि कृतानि चाप्रमेयद्युतिमन्ति धुतिमत्सु मन्दिरेषु । मनुजामरपूजितानि वंदे प्रतिबिम्बानि जगत्त्रये जिनानाम् ॥११॥
For Private And Personal Use Only