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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देववन्दना-प्रयोगानुपूर्वी अर्थ-अनन्तर जिनेन्द्र का केवलज्ञान जयवंत हो, जिसमें स्यादस्ति स्यान्नास्ति आदि सात भंग रूप कल्लोलें हैं जो द्रव्यों के उत्पाद व्यय, ध्रौव्य रूप स्वभावों को प्रकाशित करता है। ऐसा यह केवलज्ञान अनन्तसुख के मोहनीय रूप द्वार को अंतराय रूप आगल से रहित उद्घाटन कर ज्ञानदर्शनावरण रूप रजसे रहित व्याधि अथवा जरा मरण से रहित अविनश्वर मोक्ष को देवे ॥३॥ अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायेभ्यस्तथा च साधुभ्यः । सर्वजगद्वन्येभ्यो नमोऽस्तु सर्वत्र सर्वेभ्यः ॥४॥ अर्थ-सम्पूर्ण जगत् द्वारा वन्दनीय सब अहँतों को, सब प्राचार्यों को, सब उपाध्यायों को और सब साधुओं को नमस्कार हो ॥४॥ मोहादिसर्वदोषारिघातकेभ्यः सदाहतरजोभ्यः । विरहितरहस्कृतेभ्यः पूजाहेभ्यो नमोऽर्हद्भयः ॥५॥ अर्थ-जो मोह राग द्वेष आदि सम्पूर्ण दोष रूप शत्रुओं के घातक हैं जिनने हमेशा के लिये ज्ञानावरण रूप रज को नष्ट कर दिया है, तथा अन्तराय कर्म का भी जिनने विनाश कर दिया है ऐसे पूजा योग्य अहंतों को नमस्कार हो ॥५॥ क्षान्त्यार्जवादिगुणगणसुसाधनं सकललोकहितहेतुं । शुभधामनि धातारं वन्दे धर्म जिनेन्द्रोक्तम् ॥६॥ अर्थ-क्षमा, आर्जव, मार्दव, शौच, आदि गुणों का समुदाय जिस की उत्पत्ति में साधन है । जो सम्पूर्ण लोक के हित का कारण है और शुभ धाम जो निर्वाण उसमें स्थापन करने वाला है ऐसे जिनेन्द्रोक्त धर्म को वन्दता हूँ ॥ ६॥ मिथ्याज्ञानतमोवृतलोकैकज्योतिरमितगमयोगि । सांगोपांगमजेयं जैनं वचनं सदा वन्दे ॥७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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