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देववन्दना-प्रयोगानुपूर्वी
में श्रेष्ठ चौवीस तीर्थंकर मुझ स्तुतिकर्ता पर प्रसन्न होवें ॥६॥ वचनों से कीर्तन किये गये, मन से वंदना किये गये और काय से पूजे गये ऐसे ये लोकोत्तम कृतकृत्य जिनेन्द्र मुझे परिपूर्ण ज्ञान, समाधि और बोधि प्रदान करें ॥७॥ सम्पूर्ण आवरणों के नष्ट हो जाने से चन्द्रमा से भी अधिक निर्मल, सम्पूर्ण लोक का उद्योत करने वाले केवल ज्ञानरूप प्रभा से समन्वित होने से सूर्य से भी अधिक प्रभासमान, तथा अलक्षमाण गुण रूप रत्नों से परिपूर्ण होने से सागर के समान गंभीर ऐसे सिद्ध परमात्मा मुझ स्तवक को सर्व कर्म विप्रमोक्ष रूप सिद्धि देवें ॥८॥
___ अनन्तर तीन आवर्त और एक शिरोनति करें। इस तरह एक कायोत्सर्ग में दो प्रणाम बारह आवर्त और चार शिरोनमन हुए। सामायिक दण्डक के आदि में तीन आवर्त और एक शिरोनमन, अन्त में तीन आवर्त और एक शिरोनमन, तथा चतुर्विंशतिस्तव के आदि में तीन आवर्त और एक शिरोनमन और अन्त में तीन आवर्त और एक शिरोनमन एवं बारह प्रावत और चार शिरोनमन तथा सामायिक दण्डक के आदि में तीन आवर्त और एक शिरोनमन के पहले अथ पौर्वाह्निकं इत्यादि क्रिया विज्ञापन कर खड़े होने के पीछे एक पंचांग भूमिस्पर्शनात्मक नमस्कार तथा चतुर्विंशतिस्तव दण्डक के आदि में तीन आवर्त और एक शिरोनमन के पहले तथा कायोत्सर्ग के अनन्तर एक पंचांग नमस्कार एवं दो प्रणाम एक कायोत्सर्ग में हुए | ___अनन्तर तीन प्रदक्षिणा देते हुए और प्रति दिशा में तीन तीन आवर्त और एक एक शिरोनमन करते हुए नीचे लिखी हुई चैत्यवन्दना पढ़ें । तद्यथा
चैत्यभक्तिजयति भगवान् हेमाम्भोजप्रचारविजृमितावमरमुकुटच्छायोद्गीर्णप्रभापरिचुम्बितौ । १-वन्दनामुद्रया स्तुत्वा चत्यानि त्रिप्रदक्षिणम् ॥६॥
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