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सुविहिं च पुप्फयंतं सीयल सेयं च वासुपुज्जं च । विमलमणतं भयवं धम्मं संतिं च वंदामि ||४|| कुंथुं च जिणवरिंदं अरं च मल्लिं च सुब्वयं च णमिं । वंदामि रिहणेमिं तह पासं वड्ढमाणं च ॥५॥ एवं मए अभिथुआ वियरयमला पहीणजरमरणा । चउवीसं पि जिणवरा तित्थयरा मे पसीयंतु || ६ || कित्तिय वंदिय महिया एदे लोगोत्तमा जिणा सिद्धी । आरोग्गणाणलाई दिंतु समाहिं च मे बोहिं ॥७॥ चंदेहिं णिम्मलयरा आइचेहिं अहियपयासंता । सायरमिव गंभीरा सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ॥८॥
जो देश जिन ऐसे गणधर आदि से श्रेष्ठ हैं, अनंत संसार का जिनने जीत लिया है अथवा जो केवल ज्ञान युक्त अनन्तजिन हैं, मनुष्यों में उत्कृष्ट लोक जो चक्रवर्ती आदि उनके द्वारा जो पूज्य हैं, जिसने ज्ञानावरण और दर्शनावरण रूप मल को नष्ट कर दिया है, जो पूज्यता को प्राप्त हुए हैं अथवा महाप्राज्ञ हैं ऐसे तीर्थंकरों का स्तवन करता हूँ|| १ || जो केवल ज्ञान द्वारा लोक का प्रकाश करने वाले हैं, उत्तम क्षमा आदि दशलक्षण धर्म रूप तीर्थ के कर्ता हैं, कर्मरूप शत्रुओं को जीतने वाले हैं अथवा केवल ज्ञान से समन्वित हैं ऐसे चतुर्विंशति अतों का बन्दना पूर्वक निज-निज नाम सहित कीर्तन करूँगा ||२|| ऋषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व और चन्द्रप्रभ जिनको वन्दना करता हूँ ||३|| सुविधि द्वितीय नाम पुष्पदंत, शीतल, श्रेयान्, वासुपूज्य, विमल, अनंत, धर्म और शान्ति भगवान् को वन्दना करता हूं ॥४॥ तथा कुंथु र, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, अरिष्टनेमि, पार्श्व और वर्धमान जिनवरेन्द्र को वन्दना करता हूँ ||५|| इस तरह मेरे द्वारा स्तवन किये गये, रजोमल से रहित, जरा और मरण से होन तथा देश जिनों
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