________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३३२
क्रिया-कलापे
अथ दीक्षाग्रहणक्रियायां..."सिद्धभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
('सिद्धानुद्धृत' इत्यादि) अथ दीक्षाग्रहणक्रियायां...'योगिभक्तिकायोत्सर्ग करोमि('थोस्सामि गुणधराणं' इत्यादि 'जातिजरोरुरोग' इत्यादि वा) अनन्तरं लोचकरणं, नामकरणं, नाग्न्यप्रदानं, पिच्छप्रदानं च अथ दीक्षानिष्ठापनक्रियायां... "सिद्धभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
दीक्षादानोत्तरकर्तव्यम्'व्रतसमितीन्द्रियरोधाः पंच पृथक् क्षितिशयो रदाघर्षः । स्थितिसकृदशने लुञ्चावश्यकषट्के विचेलताऽस्नानम् ॥ इत्यष्टाविंशतिं मूलगुणान् निक्षिप्य दीक्षिते । संक्षेपेण सशीलादीन् गणी कुर्यात्प्रतिक्रमम् ।।
२६--अन्यदातनलोचक्रिया'लोचो द्वित्रिचतुर्मासैर्वरो मध्योऽधमः क्रमात् ।
लघुप्राग्भक्तिभिः कार्यः सोपवासप्रतिक्रमः ॥
१-उस दीक्षित में पांच व्रत, पांच समिति, पांच इन्द्रियनिरोध, क्षितिशयन, अदन्तधावन, स्थितिभोजन, सकृद्भुक्ति, लोच, छह आवश्यक, अचेलता और अस्नान इन अट्ठाईस मूल गुणों को संक्षेप से चौरासी लाख गुणों तथा अठारह हजार शीलों के साथ साथ स्थापित कर दीक्षादाता आचार्य उसी दिन व्रतारोपण प्रतिक्रमण करे। यदि लग्न ठीक न हो तो कुछ दिन ठहर कर भी प्रतिक्रमण कर सकता है।
२-दूसरे, तीसरे या चौथे महीने में लोच करना चाहिए । दो महीने से लोच करना उत्कृष्ट, तीन महीने से मध्यम और चार महीने
For Private And Personal Use Only