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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नैमित्तिकक्रियाप्रयोगविधिः । १२ २२ - चलाचलविम्प्रतिष्टायाः क्रिया 'चलाचलप्रतिष्ठायां सिद्धशान्तिस्तुतिर्भवेत् । वन्दना चाभिषेकस्य तुर्यस्नाने मता पुनः ॥ ३२६ सामान्यमुनि के शरीर और निषद्याभूमि में सिद्धभक्ति, चारित्रभक्ति योगिभक्ति और शान्तिभक्ति पढ़कर, (३) सिद्धान्तवेत्ता मृत सामान्य मुनि के शरीर और निषद्याभूमि में सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, योगिभक्ति और शान्तिभक्ति पढ़कर, (४) उत्तरव्रती और सिद्धान्तवेत्ता मृत सामान्य मुनि के शरीर और निषद्याभूमि में सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति, योगिभक्ति और शान्तिभक्ति पढ़कर, (५) मृत आचार्य के शरीर और निषद्याभूमि में सिद्धभक्ति, योगिभक्ति, आचार्यभक्ति और शान्तिभक्ति पढ़कर, (६) कायक्लेशी मृत आचार्य के शरीर और निषद्याभूमि में सिद्धभक्ति, चारित्रभक्ति, योगिभक्ति, आचार्यभक्ति और शान्तिभक्ति पढ़कर, (७) सिद्धान्त के ज्ञाता मृत आचार्य के शरीर और निषद्याभूमि में सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, योगिभक्ति, आचार्यभक्ति और शान्तिभक्ति पढ़कर, (८) शरीर क्लेशी और सिद्धान्तवेत्ता मृत आचार्य क़ शरीर और निषद्याभूमि में सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति, योगिभक्ति, आचार्यभक्ति और शान्तिभक्ति पढ़कर वन्दना क्रिया करें । १ - चलजिनबिम्ब की प्रतिष्ठा और प्रचलजिनबिम्ब की प्रतिष्ठा में सिद्धभक्ति और शान्तिभक्ति होती है । चलजिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के चतुर्थ दिन के अवभृथ स्नान में अभिषेकवन्दना अर्थात् सिद्धभक्ति, चैत्यभक्ति, पंचगुरुभक्ति और शान्तिभक्ति मानी गई है। अचलजिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के चतुर्थ दिन के अवभृथ स्नान में सिद्धभक्ति, चारित्रभक्ति, बड़ी चारित्रालोचना और शान्तिभक्ति करना चाहिए । For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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