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क्रिया-कलापे
शेषविधिः'मासं वासोऽन्यदैकत्र योगक्षेत्रं शुचौ ब्रजेत् । मार्गेऽतीते त्यजेच्चार्थवशादपि न लंघयेत् ॥ नभश्चतुर्थी' तद्याने कृष्णां शुक्लोजपंचमीं। यावन्न गच्छेत्तच्छेदे कथंचिच्छेदमाचरेत् ॥
१६-कारनिर्वाणक्रिया योगान्तेऽर्कोदये सिद्धनिर्वाणगुरुशान्तयः । प्रणुत्या वोरनिर्वाणे कृत्यातो नित्यवन्दना । अथ वीरनिर्वाणक्रियायां................. सिद्धभक्तिकायोत्सर्ग करोमि--
--चतुर्मास के अलावा हेमन्तादि ऋतुओं में मुनिगण किसी एक नगरादि स्थान में एक महीने तक ठहर सकता है। आषाढ़ के महीने में वह श्रमणसंघ वर्षायोग स्थान को चला जाय और मगसिर का महीना बीतते ही उस वर्षायोग स्थान को छोड़ दे। यदि आषाढ़ के महीने में वर्षायोग स्थान में न पहुंच सके तो कारणवश भी श्रावण बदी चतुर्थी का उल्लंघन न करे अर्थात् श्रावण बदी चतुर्थी तक वर्षायोग स्थान में अवश्य पहुंच जाय । तथा कार्तिक शुक्ला पंचमी के पहले प्रयोजनक्श भी वर्षायोग स्थान को छोड़ कर स्थानान्तर को न जाय । दुर्निर उपसर्गादि के कारण यथोक्त वर्षायोग प्रयोग का उल्लंघन करना पड़े तो प्रायश्चित्त ग्रहण करे।
२--कार्तिक बदी चतुदर्शी की रात्रि के चौथी पहर में वर्षायोगनिष्ठापन किया जाता है । इस लिए वर्षायोग के निष्ठापन के अनन्तर सूर्योदय हो जाने पर वीरनिर्वाणक्रिया करे। उस में सिद्धभक्ति,निर्वाणभक्ति, गुरुभक्ति और शान्तिभक्ति करे। इसके बाद नित्यवन्दना करे।
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