SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ क्रिया-कलापे-- १७ वर्षायोगग्रहण किया'ततश्चतुर्दशीपूर्वरात्रे सिद्धमुनिस्तुती। चतुर्भिक्षु परीत्याल्पाश्चैत्यभक्तीगुरुस्तुतिम् ॥ शान्तिभक्तिं च कुर्वाणैवर्षायोगस्तु गृह्यताम् । अथ वर्षायोगप्रतिष्ठापनाक्रियायो.........सिद्धभक्तिकायोत्सर्ग करोमि--(सिद्धिभक्ति-पठनं ) ___ अथ वर्षायोगप्रतिष्ठापनाक्रियायां.........योगभक्तिकायोत्सर्ग करोमि-(योगिभक्तिपठनं) पूर्वस्यां दिशि यावन्ति जिनचैत्यानि विद्यन्ते भुवनत्रये । तावन्ति सततं भक्त्या त्रिःपरीत्य नमाम्यहम् ।। इमं श्लोकं पठित्वा वृषभाजितस्वयंभूस्तवद्वयमुच्चार्य 'अथ वर्षायोगप्रतिष्ठापनाक्रियायां चैत्यभक्तिकायोत्सर्ग करोमि' इत्येवं प्रतिज्ञाप्य, दंडादिकं भणित्वा 'वर्षेषु वर्षान्तर' इत्यादिकां लघुचैत्यभक्तिं सांचलिकां पठेत् । इति पूर्वदिक्चैत्यवन्दना। १-प्रत्याख्यानप्रयोगविधि के अनन्तर आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी की रात्रि के प्रथम पहर में सिद्धमक्ति और योगिभक्ति करके, चारों दिशाओं में प्रदक्षिणापूर्वक एक एक दिशा में लघुचैत्यभक्ति पढ़ते हुए, पंचगुरुभक्ति और शान्तिभक्ति पढ़ते हुए वर्षायोगग्रहण करें। भावार्थपूर्व दिशा की ओर मुखकरके पहले सिद्धभक्ति और योगिभक्ति पढ़ें । चैत्यभक्ति को ऊपर बताये हुए विधान के अनुसार पूर्वादि दिशाओं की ओर मुख करके चार वार पढ़ें । अथवा भावसे ही प्रदक्षिणा करना चाहिए । इसलिए एक ही पूर्व या उत्तर दिशामें मुख करके उक्तरीति से चार वार चैत्यभक्ति पड़े। इस तरह वर्षायोग ग्रहण करें। For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy