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नैमित्तिकक्रियाप्रयोगविधिः।
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१०- श्रुतपंचमीक्रिया 'वृहत्या श्रुतपंचम्यां भक्त्या सिद्धश्रुतार्थया। श्रुतस्कन्धं प्रतिष्ठाप्य गृहीत्वा वाचनां वृहत् ॥ तम्या गृहीत्वा स्वाध्यायः कृत्या शान्तिनु तिस्ततः । यमिनां, गृहिणां सिद्धश्रुतशान्तिस्तवाः पुनः ॥ अथ श्रुतस्कन्धप्रतिष्ठापनक्रियायां..."सिद्धभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
('सिद्धानुघृत' इत्यादि) अथ श्रुतस्कन्धप्रतिष्ठापनक्रियायां...''श्रुतभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
कायोत्सर्ग करें। अनन्तर श्राचार्य 'थोस्सामि' इत्यादि दंडक और गणधरवलय को पढ़ कर प्रतिक्रमण दंडकों को पढ़े, तब तक शिष्यसधर्मा कायोत्सर्ग से स्थित हुए आचार्य-मुख-निर्गत प्रतिक्रमण दंडकों को सुने। अनन्तर साधुवर्ग 'थोस्सामि' इत्यादि दंडक को पढ़ें, अनन्तर प्राचार्य सहित सब मिल कर 'वदसमिदिदियरोधो' इत्यादि को पढ़ कर वीरभक्ति पढ़े । अनन्तर शान्तिकीर्तनापूर्वक चतुर्विंशतिजिनस्तुति, लघु चारित्रालोचनायुक्त बृहदाचार्यभक्ति, बृहत् आलोचनायुक्त मध्याचार्यभक्ति और लघुःआलोचना सहित लघु आचार्यभक्ति पढ़ें।
१-मुनि, श्रुतपंचमी के दिन बृहत्सिद्धभक्ति और बृहत् श्रुतभक्ति पूर्वक श्रुतस्कंध की प्रतिष्ठापना कर श्रुतावतार का उपदेश दे। अनन्तर श्रुतभक्ति और प्राचार्यभक्ति पूर्वक स्वाध्याय करे और श्रुतभक्ति पढ़कर स्वाध्याय निष्ठापन करे । अन्त में शान्ति भक्ति पड़े। तथा श्रावक, सिद्धभक्ति,श्रुतभक्ति और शान्तिभक्ति करे ।
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