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क्रिया-कलापे
वन्दित्वाचार्यमाचार्यभक्त्या लळ्या ससूरयः । प्रतिक्रान्तिस्तुतिं कुर्युः प्रतिकामेत्तमो गणी ॥ अथ वीरस्तुतिं शान्तिचतुर्विंशतिकीर्तनाम् । सवृत्तालोचनां गुर्वी सगुलोचनां यताः ॥ मध्यां सूरिनुतिं तां च लघ्वी कुर्युः परे पुनः । (एष विधिः ७० पृष्ठादारभ्य १२३ पृष्ठं यावदुक्तो शेयः)
स्थ शिष्य सधर्मा सब मिल कर ( इष्टदेवता नमस्कार पूर्वक 'समता सर्वभूतेषु' इत्यादि पढ़ कर) अंचलिका सहित बृहत्सिद्धभक्ति और बृहत् आलोचना सहित चारित्रभक्ति अहंत भट्टारक के आगे बोले । अनन्तर अकेला प्राचार्य (णमो अरहंताणं' इत्यादि पंच पदों का उच्चारण कर, कायात्सर्ग कर, 'थोस्सामि' इत्यादि पढ़ कर) लघु सिद्धभक्ति अर्थात् 'तव सिद्ध' इत्यादि गाथा को अंचलिका सहित पढ़ कर, (फिर 'णमो अरहंताणं' इन पांच पदों का उच्चारण कर कायोत्सर्ग कर, 'थोस्सामि' इत्यादि पढ़ कर) अंचलिका सहित लघु योगिभक्ति 'प्रावृट्काले सविद्युत्' इत्यादि पढ़ कर, 'इच्छामि भंते ! चरित्तायारो तेरहविहो' इत्यादि पांच दंडक पढ़ कर 'वदसमिदिदिय' इत्यादि से लेकर 'छेदोवट्ठावणं होदु मझ' तक तीन वार पढ़ कर अहंत देव के आगे अपने दोषों की
आलोचना करे और दोषानुसार प्रायश्चित्त लेकर 'पंच महाव्रत' इत्यादि पाठ को तीन वार पढ़ कर, योग्यशिष्यादिक को प्रायश्चित्त निवेदन कर देव को गुरुभक्ति देवे। अनन्तर प्राचार्य के साथ साथ शिष्य सधर्मा श्राचार्य के आगे आचार्योक्त इसी पाठको फिर पढ़ कर अर्थात् उसी क्रम से लघुसिद्धभक्ति और लघु योगिभक्ति पढ़ कर प्रायश्चित्त लेकर, लघु आचार्यभक्ति द्वारा श्राचार्य की वन्दना कर प्रतिक्रमण स्तुति करें अर्थात् कृत्यविज्ञापना पूर्वक ‘णमो अरहताणं' इत्यादि दंडक पढ़ कर
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