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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नैमित्तिकक्रियाप्रयोगविधिः । E कापूर्वचेत्यदर्शन किया 'दृष्ट्वा सर्वाण्यपूर्षाणि चैत्यान्येकत्र कल्पयेत् । क्रियां तेषां तु षष्ठेऽनुश्रूयते मास्यपूर्णता 'अथ श्रनेकापूर्णचैत्यदर्शनक्रियायां' इत्युच्चार्य अपूर्वचैत्य दर्शनक्रिया कर्तव्या । ६- पाक्षिकादिप्रतिक्रमणकिया. पाक्षिक्यादिप्रतिक्रान्तो वन्देरन् विधिवद्गुरुम् । सिद्धवृत्तस्तुती कुर्याद्गुवीं चालोचनां गणी ॥ देवास्या परे सूरेः सिद्धयोगिस्तुती लघू । सवृत्तालोचने कृत्वा प्रायश्चित्तमुपेत्य च ॥ ३१५ १ – अनेक अपूर्व जिन प्रतिमाओं को देख कर एक अभिरुचित जिनप्रतिमा में अनेक अपूर्व जिनचैत्य वन्दना क्रिया करे । तथा छठे महीने में उन प्रतिमाओं में अपूर्वता सुनी जाती है । भावार्थ - किसी प्रतिमा के एक वार दर्शन हो जाने पर छठे महीने में पुनः उसके दर्शन हो तो वह प्रतिमा पूर्व प्रतिमा कही जाती है ऐसी व्यवहारी पुरुषों की परंपरा है। अतः उस अपूर्व प्रतिमा में और जिसके दर्शन पहले हुए ही न हों उस अपूर्व प्रतिमा में उक्त रीत्या क्रिया करना चाहिए। कहीं अनेक अपूर्व प्रतिमा हों तो उन सब पूर्व प्रतिमाओं में से किसी एक अभिरुचित प्रतिमा के सन्मुख क्रिया करना चाहिए । For Private And Personal Use Only २- शिष्य और सधर्मा, पाक्षिक चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमणा में लघु सिद्धभक्ति, लघु श्रुतभक्ति और लघु आचार्य भक्ति पढ़ कर पहले आचार्य की वन्दना करें । अनन्तर आचार्य और संघ
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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