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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रिया-कलापे ५-तीर्थकरजन्मक्रिया'तीर्थकजन्मनि जिनप्रतिमायां च पाक्षिकी । 'अथ पाक्षिकक्रियायां' इत्यस्य स्थाने अथ तीर्थकृज्जन्मक्रियायां ।' इत्युच्चार्य पाक्षिकीक्रिया कर्तव्या। ६--पूर्वजिनात्यक्रिया'अथ पाक्षिकक्रियायां' इत्यस्य स्थाने 'अथ पूर्वजिनचैत्यक्रियायां' इत्युचार्य पाक्षिकीक्रिया पूर्वोक्तव कर्तव्या । ७-अपूर्वचैत्यवन्दनाक्रिया'दर्शनपूजात्रिसमयवन्दनयोगोऽष्टमीक्रियादिषु चेत् । प्राक्तर्हि शान्तिभक्तेः प्रयोजयेच्चैत्यपंचगुरुभक्ती ॥ 'अथ अपूर्वचैत्यवन्दनाक्रियायां' इत्येवमुच्चार्य सिद्धभक्तिश्रुतभक्ति-सालोचनाचरित्रभक्तीः कृत्वा चैत्यभक्ति-पंचगुरुभक्ती कुर्यात्, अनन्तरं शान्तिभक्तिं कुर्यात् । एषोऽष्टमीक्रियायां विधिः । पाक्षिकक्रियायां ताभ्यां योगे सति सिद्धचारित्रभक्ती कृत्वा चैत्यपंचगुरुभक्ती कुर्यात् अनन्तरं शान्तिभक्तिं कुर्यात् । १-तीर्थकरजन्म और जिनप्रतिमा अर्थात् पूर्वजिनचैत्यमें पाक्षिकीक्रिया करना चाहिए। भावार्थ-विहार करते करते छह महीने पहले उसो प्रतिमाके पुनः प्रथम दर्शन हो तो उसे पूर्णजिनचैत्य कहते हैं। उस पूर्वजिन चैत्यका दर्शन करते समय पूर्वोक्त पाक्षिकीक्रिया करना चाहिए। २-अष्टमी श्रादि क्रियाओं में यदि दर्शनपूजा अर्थात् अपूर्वचैत्यदर्शन और नित्यदेववन्दना का योग आ उपस्थित हो तो शान्ति भक्ति के पहले चैत्यभक्ति और पंचगुरुभक्ति का प्रयोग करे। For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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