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पाक्षिकोक्रिया।
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२-पाक्षिकी क्रिया उकं हि चारित्रसारे
'चतुर्दशीदिने धर्मव्यासंगादिना क्रिया कतुं न लभ्येत चेत् ' पाक्षिकेऽष्टमीक्रिया कर्तव्या।
क्रियाकांडेऽपि'जदि पुण धम्मव्वासंगा ण कया होज चउहसीकिरिया। तो पुरिणमाइदिवसे कायव्वा पक्खिया किरिया ॥ १ ॥ तत्र तावञ्चारित्रसारानुसारेण पाक्षिकीक्रिया यथा
'पाक्षिके सिद्ध-चारित्र-शान्तिभकया। अथ पाक्षिकीक्रियायां..."सिद्धभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
(दंडादिविधानं भक्तिपठनं ) अथ......."सालोचनाचारित्रभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
दंडादिकं विधाय 'येनेन्द्रान्' इत्यादिकां 'तिलोए सव्वजोवाणं' इत्यादिकां वा भक्तिं पठेत् । भक्त्यंते 'इच्छामि भंते ! चरित्तायारो तेरसविहो' इत्यालोचना कार्या ।
अथ.....''शान्तिभक्तिकायोत्सर्ग करोमि--
(शान्तिभक्तिं पठित्वा समाधिभक्तिं पठेत् )
१-चतुर्दशी के दिन धर्मव्यासंग आदि के कारण क्रिया न कर पाये तो पूर्णिमा और अमावस के रोज अष्टमीक्रिया करना चाहिए।
२-यदि धर्मव्यासंग से चतुर्दशी के रोज चतुर्दशीक्रिया न की जा सके तो पूर्णिमा और अमावस के रोज पाक्षिकीक्रिया करना चाहिए।
३-पाक्षिकीक्रिया में सिद्धभक्ति, सालोचना चारित्रभक्ति, और शान्तिभक्ति करना चाहिए।
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