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चतुर्दशीक्रिया
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अथ चतुर्दशीक्रियायां पूर्वीचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थ भावपूजावन्दनास्तवसमेतं श्रीचैत्यभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
इत्युच्चार्य सामायिकदंडक पठित्वा कायोत्सर्ग कृत्वा तदनु चतुर्विंशतिस्तवं भणित्वा 'जयति भगवान्' इत्यादिकां चैत्यभक्तिं सांचलिकां पठेत् ।
अथ चतुर्दशीक्रियायो........'श्रीश्रुतभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
अत्रापि पूर्ववदंडकादिकं विधाय 'स्तोष्ये संज्ञानानि' इत्यादि. का (१६८) 'सिद्धवरसासणाणं' इत्यादिकां (१८२) वा सांचलिकां भुतभक्तिं पठेत् ।
अथ चतुर्दशीक्रियायां...............श्रीपंचमहागुरुभक्तिकायोत्सर्ग करोमि
'श्रीमदमरेन्द्र' इत्यादिकां (२६२) 'मणुय णाइंदा' इत्यादिका वा पंचगुरुस्तुतिं सांचलिकां पठेत् ।
अथ चतुर्दशीक्रियायां........................चैत्यभक्तिश्रुतभक्ति-पंचगुरुभक्तीविधाय तद्धीनाधिकत्वादिदोषविशुद्धयर्थ समाधिभक्तिकायोत्सर्ग करोमि---
इत्युच्चार्य दंडादिकं पठित्वा 'अथेष्टप्रार्थना' इत्यादिकां समाधिभक्किं पठेत् । अनन्तरं यथावकाशं यथावलं चात्मानं ध्यायेत् ।
___ संस्कृतक्रियाकाण्डानुसारेण चतुर्दशीक्रिया यथाकायोत्सर्ग, पुनः पंचांग प्रणाम, और चतुर्विशतिजिनस्तुति इसके आदि और अंत में तीन तीन आवर्त और एक एक शिरोनति करके प्रत्येक भक्ति पढ़ना चाहिए। जिन जिन क्रियाओं में जितनो जितनी भक्तियों के पढ़ने का विधान हो उन सब को उक्त रोति से पढ़ कर अन्त में समाधिभक्ति पढ़ना चाहिए। और मुद्रा आदि का प्रयोग भी प्रथमाध्याय में बताई गई विधि के अनुसार करना चाहिए।
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