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नमः सिद्धेभ्यः ।
नैमित्तिकक्रिया प्रयोगविध्यध्यायश्चतुर्थः ।
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१-चतुर्दशीक्रिया
प्राकृतक्रियाकाण्डानुसारेण चतुर्दशीक्रिया यथा-जि' देववंदरणाए चेदियभत्तीय पंचगुरुभक्ती । चउदसियं तं मझे सुदभत्ती होय कायव्वा ॥ १ ॥
१ - नित्य जिनदेववन्दना या सामायिक में चैत्यभक्ति और पंचगुरुभक्ति करना चाहिए । और चतुर्दशी के दिन इन दोनों के मध्य में श्रुतभक्ति करना चाहिए।
भावार्थ-- नित्य त्रिकालिकवन्दनायुक्त ही चतुर्दशीक्रिया की जाती है । इस क्रिया के करने का समय भी त्रिकाल वन्दना का समय ही है । प्रतिदिन की त्रिकालवन्दना में चैत्यभक्ति और पंचगुरुभक्ति की जाती है । चतुर्दशी के दिन इन दोनों भक्तियों के मध्य में श्रुतभक्ति और कर लेने से नित्यवन्दना और चतुर्दशोक्रिया दोनों हो जाती हैं।
विशेष - क्रियाविज्ञापन, पंचांग नमस्कार, सामायिकदंडकपठन, इसके आदि और अन्त में तीन तीन आवर्त और एक एक शिरोनति,
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