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देववन्दना-प्रयोगानुपूर्वी
अनन्तर बैठे बैठे ही नीचे लिखा पाठ पढ़ कर सामायिक स्वीकार करें।
खम्मामि सव्वजीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे । मित्ती मे सव्वभूदेसु वेरं ममं ण केण वि ॥१॥ रायबंधं पदोसं च हरिसं दीणभावयं ।। उस्सुगत्तं भयं सोग रदिमरदिं च वोस्सरे ॥२॥ हा दुदृकयं हा दुदृचिंतियं भासियं च हा दुई । अंतोअंतो डझमि पच्छुत्तावेण वेयंतो ॥३॥ दव्वे खेत्ते काले भावे य कदावराहसोहणयं । जिंदणगरहणजुत्तो मणवचकाएण पडिकमणं ॥४॥ समता सर्वभूतेषु संयमः शुभभावना ।
आर्तरौद्रपरित्यागस्तद्धि सामायिकं मतं ॥५॥
मैं सम्पूर्ण जीवों को क्षमा करता हूँ, सब जीव मुझे क्षमा करें, मेरा किसी के साथ वैर-भाव नहीं है इस लिए सब प्राणियों के साथ मेरा मैत्री-भाव है ॥१॥ राग, द्वेष, हर्ष, दीनता, उत्सुकता, भय, शोक, रति और अरति इन सब का मैं त्याग करता हूँ ॥२॥ हा ! मैंने कोई दुष्ट कार्य किया हो, दुष्ट चिन्तवन किया हो, तथा दुष्ट वचन बोले हों, तो मैं भगवान् अहंत के समक्ष निवेदन करता हुआ पश्चात्ताप पूर्वक अपने मन ही मन में दग्ध होता हूँ अर्थात् अपनी निन्दा करता हूँ ॥३॥ मैं निंदा और गर्दा से युक्त हुआ मन, वचन और काय की क्रिया से द्रव्य, क्षेत्र, काल, और भाव के विषय में किये गये अपराध का शोधन रूप प्रतिक्रमण करता हूँ ॥४॥ सभी प्राणियों में समता भाव रखना, संयम पालना, शुभ भावना भाना, आर्त और रौद्रध्यानों का परित्याग करना सो सब सामायिक है ॥५॥
१ उक्त्वात्तसाम्यो..........
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