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क्रिया-कलापे
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चार ही विदिशाओं में विहार करते हुए भव्य को चार हाथ प्रमाण भूमि देख कर चलना चाहिए किन्तु प्रमादवश अत्यन्त जल्दी जल्दी ऊँचे को मुख किये हुये इधर उधर गमन करने के कारण विकलेन्द्रिय प्राणों का, बनस्पतिकायिक भूतों का, पंचेन्द्रिय जीवों का तथा पृथिवी जल आदि सत्वों का उपघात किया हो, औरों से कराया हो, करते हुए को अच्छा माना हो तो उस उपघात से जाय मान मेरा दुष्कृत मिथ्या हो निष्फल हो ।
अनन्तर 'उठकर गुरु को अथवा देव को पंचांग नमस्कार करें पुनः गुरु के समक्ष अथवा गुरु दूर हो तो देव के समक्ष बैठ कर कृत्य विज्ञापन करें कि
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नमोऽस्तु भगवन् ! देववन्दनां करिष्यामि ।
अनन्तर पर्यंकासन से बैठ कर नीचे लिखा मुख्य मंगल पढ़ें । सिद्धं सम्पूर्णभव्यार्थ सिद्धेः कारणमुत्तमम् । प्रशस्तदर्शनज्ञानचारित्रप्रतिपादनम् ||१|| सुरेन्द्रमुकुटाश्लिष्टपादपद्मांशुकेशरम् । प्रणमामि महावीरं लोकत्रितयमंगलम् ||२||
जिनको अनन्त चतुष्टय रूप आत्मस्वरूप की प्राप्ति हो चुकी है, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष लक्षण सम्पूर्ण भव्यर्थ की निष्पत्ति के उत्तम कारण हैं, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के प्रति - पादन करने वाले हैं, जिनके चरण कमल की किरण रूप केशर देवेन्द्रों मुकुट में आलिष्ट है-लगो हुई है, जो तीन लोक के भव्य प्राणियों के पाप का नाश करने वाले हैं उन चौवीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर को प्रणाम करता हूँ ।
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“मालोच्यानम्रकांघ्रिदोः ।
नत्वाश्रित्य गुरोः कृत्यं पर्यं कस्थोऽग्रमंगलम् ॥ ३ ॥
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